श्री जम्भेश्वर भगवान द्वारा अपनी काव्य भाषा में २९ नियम यही हैं।
तीस दिन सूतक, पांच ऋतुवन्ती न्यारो ।
सेरो करो स्नान, शील सन्तोष शुचि प्यारो ॥
द्विकाल सन्ध्या करो, सांझ आरती गुण गावो ।
होम हित चित्त प्रीत सूं होय, बास बैकुण्ठे पावो ॥
पाणी बाणी ईन्धणी दूध, इतना लीजै छाण ।
क्षमा दया हृदय धरो, गुरू बतायो जाण ॥
चोरी निन्दा झूठ बरजियो, वाद न करणों कोय ।
अमावस्या व्रत राखणों, भजन विष्णु बतायो जोय ॥
जीव दया पालणी, रूंख लीला नहिं घावै ।
अजर जरै जीवत मरै, वे वास बैकुण्ठा पावै ॥
करै रसोई हाथ सूं, आन सूं पला न लावै ।
अमर रखावै थाट, बैल बधिया न करवौ ॥
अमल तमाखू भांग मांस, मद्य सूं दूर ही भागै ।
लील न लावै अंग, देखते दूर ही त्यागे ॥
उन्नतीस धर्म की आखड़ी, हिरदै धरियो जोय ।
जाम्भे जी किरपा करी, नाम बिष्नोई होय ॥
विस्तार में जानें:
१. तीस दिन सूतक
२. पंच दिन का रजस्वला
३. सुबह स्नान करना
४. शील, संतोष, शुचि रखना
५. प्रातः-शाम संध्या करना
६. साँझ आरती विष्णु गुण गाना
७. प्रातःकाल हवन करना
८. पानी छान कर पीना व वाणी शुद्ध बोलना
९. ईंधन बीनकर व दूध छानकर पीना
१०. क्षमा सहनशीलता रखे
११. दया-नम्र भाव से रहे
१२. चोरी नहीं करनी
१३. निंदा नहीं करनी
१४. झूठ नहीं बोलना
१५. वाद विवाद नहीं करना
१६. अमावस्या का व्रत रखना
१७. भजन विष्णु का करना
१८. प्राणी मात्र पर दया रखना
१९. हरे वृक्ष नहीं काटना
२०. अजर को जरना
२१. अपने हाथ से रसोई पकाना
२२. थाट अमर रखना
२३. बैल को बंधिया न करना
२४. अमल नहीं खाना
२५. तम्बाकू नहीं खाना व पीना
२६. भांग नहीं पीना
२७. मद्यपान नहीं करना
२८. मांस नहीं खाना
२९ नीले वस्त्र नहीं धारण करना