एक बार एक व्यक्ति श्री वृंदावन धाम में दर्शन करने गया। दर्शन करके लौट रहा था। तभी एक संत अपनी कुटिया के बाहर बैठे बड़ा अच्छा पद गा रहे थे कि
हो नयन हमारे अटके श्री बिहारी जी के चरण कमल में बार-बार वह संत यही गाये जा रहे थे | उस संत के मुख से तभी उस व्यक्ति ने जब इतना मीठा पद सुना तो वह आगे ना बढ़ सका, और संत के पास बैठकर ही पद सुनने लगा और संत के साथ-साथ गाने लगा।
कुछ देर बाद वह इस पद को गाता-गाता अपने घर जाने लगा, रास्ते में वह सोचता जा रहा था कि,
वाह ! संत ने बड़ा प्यारा पद गाया। जब घर पहुँचा तो वह पद भूल गया।अब वह याद करने लगा कि संत क्या गा रहे थे, बहुत देर याद करने पर भी उसे याद नहीं आ रहा था। फिर कुछ देर बाद उसने गाया
हो नयन बिहारी जी के अटके, हमारे चरण कमल में इस प्रकार वह अनजाने में ही उलटा गाने लगा।
उसे गाना यह था
नयन हमारे अटके बिहारी जी के चरण कमल में अर्थात बिहारी जी के चरण कमल इतने प्यारे हैं कि नजर उनके चरणों से हटती ही नहीं हैं। नयन मानो वही अटक के रह गए हैं। पर वह गा रहा था कि
बिहारी जी के नयन हमारे चरणों में अटक गए, अब यह पंक्ति उसे इतनी अच्छी लगीं कि वह बार-बार बस यही पंक्ति गाये जा रहा था।
आँखे बंद है, बिहारी के चरण हृदय में है और बड़े भाव से वह तो बस गाये जा रहा है। अब बिहारी जी तो ठहरे प्रेम भाव के भूखे , अपने भक्त के इस निश्चल प्रेम को देख कर वह अपने को रोक ना सके । बहुत समय तक जब वह गाता रहा, तो अचानक क्या देखता है, सामने साक्षात् बिहारी जी खड़े हैं। और उसे प्रेम से निहार रहे हैं, उसे अपने नेत्रों पर विश्वास ना हुआ, वह झट उनके चरणों में गिर पड़ा।
और इस प्रकार प्रेम की एक पंक्ति ने भगवान् और भक्त दोनों को मिला दिया। वास्तव में बिहारी जी ने उसके शब्दों की भाषा सुनी ही नहीं क्योंकि बिहारी जी तो शब्दों की भाषा जानते ही नहीं है,
वो तो बस एक ही भाषा जानते है और वह है भाव की भाषा, प्रेम की भाषा। भले ही उस भक्त ने उलटा गाया पर बिहारी जी ने उसके भाव देखे कि वास्तव में यह गाना तो सही चाहता है परन्तु शब्द उलटे हो गए, शब्द उलटे हुए तो क्या हुआ, उसके भाव तो कितने निर्मल है। और यही निर्मल भाव बिहारी जी को वहाँ तक खींच कर ले गए |