Download Bhakti Bharat APP
Hanuman Chalisa - Hanuman ChalisaDownload APP Now - Download APP NowAditya Hridaya Stotra - Aditya Hridaya StotraFollow Bhakti Bharat WhatsApp Channel - Follow Bhakti Bharat WhatsApp Channel

प्रेरक कहानी - व्यक्तित्व राव हम्मीर - 7 जुलाई जन्म दिवस (Shauryaporn Vyaktitv Rav Hammir)


Add To Favorites Change Font Size
भारत के इतिहास में राव हम्मीर को वीरता के साथ ही उनकी हठ के लिए भी याद किया जाता है। उनकी हठ के बारे में कहावत प्रसिद्ध है:
सिंह सुवन, सत्पुरुष वचन, कदली फलै इक बार
तिरिया तेल हम्मीर हठ, चढ़ै न दूजी बार॥
अर्थात सिंह एक ही बार संतान को जन्म देता है। सच्चे लोग बात को एक ही बार कहते हैं। केला एक ही बार फलता है। स्त्री को एक ही बार तेल एवं उबटन लगाया जाता है अर्थात उसका विवाह एक ही बार होता है। ऐसे ही राव हम्मीर की हठ है। वह जो ठानते हैं, उस पर दुबारा विचार नहीं करते।
राव हम्मीर का जन्म सात जुलाई, 1272 को चौहानवंशी राव जैत्रसिंह के तीसरे पुत्र के रूप में अरावली पर्वतमालाओं के मध्य बने रणथम्भौर दुर्ग में हुआ था। बालक हम्मीर इतना वीर था कि तलवार के एक ही वार से मदमस्त हाथी का सिर काट देता था। उसके मुक्के के प्रहार से बिलबिला कर ऊंट धरती पर लेट जाता था। इस वीरता से प्रभावित होकर राजा जैत्रसिंह ने अपने जीवनकाल में ही 16 दिसम्बर, 1282 को उनका राज्याभिषेक कर दिया।

राव हम्मीर ने अपने शौर्य एवं पराक्रम से चौहान वंश की रणथम्भौर तक सिमटी सीमाओं को कोटा, बूंदी, मालवा तथा ढूंढाढ तक विस्तृत किया। हम्मीर ने अपने जीवन में17 युद्ध किये, जिसमें से 16 में उन्हें सफलता मिली। 17 वां युद्ध उनके विजय अभियान का अंग नहीं था।
उन्होंने अपनी हठ के कारण दिल्ली के तत्कालीन शासक अलाउद्दीन खिलजी के एक भगोड़े सैनिक मुहम्मदशाह को शरण दे दी। हम्मीर के शुभचिंतकों ने बहुत समझाया, पर उन्होंने किसी की नहीं सुनी। उन्हें रणथम्भौर दुर्ग की अभेद्यता पर भी विश्वास था, जिससे टकराकर जलालुद्दीन खिलजी जैसे कई लुटेरे वापस लौट चुके थे।

कुछ वर्ष बाद जलालुद्दीन की हत्याकर दिल्ली की गद्दी पर उसका भतीजा अलाउद्दीन खिलजी बैठ गया। वह अति समृद्ध गुजरात पर हमला करना चाहता था, पर रणथम्भौर उसके मार्ग की बाधा बना था। अतः उसने पहले इसे ही जीतने की ठानी, पर हम्मीर की सुदृढ़ एवं अनुशासित वीर सेना ने उसे कड़ी टक्कर दी।
11 मास तक रणथम्भौर से सिर टकराने के बाद सेनापतियों ने उसे लौट चलने की सलाह दी; पर अलाउद्दीन ने कपट नीति अपनाकर किले के रसद वाले मार्ग को रोक लिया तथा कुछ रक्षकों को भी खरीद लिया; लेकिन हर बार की तरह इस बार भी उसे पराजित होना पड़ा।

कहते हैं कि जब हम्मीर की सेनाओं ने अलाउद्दीन को हरा दिया, तो हिन्दू सैनिक उत्साह में आकर शत्रुओं से छीने गये झंडों को ही ऊंचाकर किले की ओर बढ़ने लगे। इससे दुर्ग की महिलाओं ने समझा कि शत्रु जीत गया है। अतः उन्होंने जौहर कर लिया। राव हम्मीर जब दुर्ग में पहुंचे, तो यह दृश्य देखकर उन्हें राज्य और जीवन से वितृष्णा हो गयी। उन्होंने अपनी ही तलवार से सिर काटकर अपने आराध्य भगवान शिव को अर्पित कर दिया। इस प्रकार केवल 29 वर्ष की अल्पायु में 11 जुलाई, 1301 को हम्मीर का शरीरांत हुआ।

राव हम्मीर पराक्रमी होने के साथ ही विद्वान,कलाप्रेमी, वास्तुविद एवं प्रजारक्षक राजा थे। प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य महर्षि शारंगधर की शारंगधर संहिता में हम्मीर द्वारा रचित श्लोक मिलते हैं। रणथम्भौर के खंडहरों में विद्यमान बाजार, व्यवस्थित नगर, महल, छतरियां आदि इस बात के गवाह हैं कि उनके राज्य में प्रजा सुख से रहती थी। यदि एक मुसलमान विद्रोही को शरण देने की हठ वे न ठानते, तो शायद भारत का इतिहास कुछ और होता। वीर सावरकर ने हिन्दू राजाओं के इन गुणों को ही सद्गुण विकृति कहा है।
यह भी जानें
अगर आपको यह prerak-kahani पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

Whatsapp Channelभक्ति-भारत वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें »
इस prerak-kahani को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें Add To Favorites
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।

** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

एक छोटी सी अच्छी आदत - प्रेरक कहानी

पुराने समय में दो दोस्त थे। बचपन में दोनों साथ पढ़ते और खेलते थे। पढ़ाई पूरी होने के बाद दोनों दोस्त अपने अपने जीवन में व्यस्त हो गए।

सत्संग के महत्व - प्रेरक कहानी

मैं काफी दिनों से आपके सत्संग सुन रहा हूं, किंतु यहां से जाने के बाद मैं अपने गृहस्थ जीवन में वैसा सदाचरण नहीं कर पाता, जैसा यहां से सुनकर जाता हूं।

निस्वार्थ भाव से दान पुण्य करें - प्रेरक कहानी

ठाकुर का एक बेटा था, जो इस जगत को देख नहीं सकता था पर ठाकुर को उस परमात्मा पर विश्वास था..

पुरुषार्थ की निरंतरता - प्रेरक कहानी

आज की कहानी के नायक अंगूठा छाप तन्विक पढ़े लिखे तो नहीं थे पर हुनरमंद अवश्य थे। वह पेशे से एक माली हैं और बंजर धरा को हरीभरी करने की कला में माहिर हैं।

चाँदी के पात्र का सही मूल्य क्या? - प्रेरक कहानी

बहुत समय पहले की बात है। किसी गाँव में एक बूढ़ा व्यक्ति रहता था। उसके दो बेटे थे..

मन को कभी भी निराश न होने दें - प्रेरक कहानी

मन को कभी भी निराश न होने दें, बड़ी से बड़ी हानि में भी प्रसन्न रहें। मन उदास हो गया तो आपके कार्य करने की गति धीमी हो जाएगी। इसलिए मन को हमेशा प्रसन्न रखने का प्रयास।

सुरसुरी जी के पतिव्रता धर्म की रक्षा - सत्य कथा

सुरसुरी जी के अनुपम सौन्दर्य को देखकर कुछ दुष्ट विचार वाले लोगों का मन दूषित हो गया और काम से पीड़ित होकर सुरसुरी जी के सतीत्व को नष्ट करने की ताक में रहने लगे।

Hanuman Chalisa - Hanuman Chalisa
Om Jai Jagdish Hare Aarti - Om Jai Jagdish Hare Aarti
×
Bhakti Bharat APP