हर साल गर्मी की छुट्टियों में हरिराम अपने दोस्तों के साथ किसी पहाड़ी इलाके में माउंटेनियरिंग के लिए जाता था। इस साल भी वे इसी मकसद से ऋषिकेश पहुंचे।
गाइड उन्हें एक फेमस माउंटेनियरिंग स्पॉट पर ले गया। हरिराम और उसके दोस्तों ने सोचा नहीं था कि यहाँ इतनी भीड़ होगी, हर तरफ लोग ही लोग नज़र आ रहे थे।
एक दोस्त बोला - यार यहाँ तो शहर जैसी भीड़ है, यहाँ चढ़ाई करने में क्या मजा?
क्या कर सकते हैं, अब आ ही गए हैं तो अफ़सोस करने से क्या फायदा, चलो इसी का मजा उठाते हैं - हरिराम ने जवाब दिया।
सभी दोस्त पर्वतारोहण करने लगे और कुछ ही समय में पहाड़ी की चोटी पर पहुँच गए।
वहाँ पर पहले से ही लोगों का तांता लगा हुआ था। दोस्तों ने सोचा चलो अब इसी भीड़ में दो-चार घंटे कैम्पिंग करते हैं और फिर वापस चलते हैं।
तभी हरिराम ने सामने की एक चोटी की तरफ इशारा करते हुए कहा - रुको-रुको! ज़रा उस चोटी की तरफ भी तो देखो, वहाँ तो बस मुट्ठी भर लोग ही दिख रहे हैं, कितना मजा आ रहा होगा, क्यों न हम वहाँ चलें।
“वहाँ!”, एक दोस्त बोला - अरे वहाँ जाना सबके बस की बात नहीं है, उस पहाड़ी के बारे में मैंने सुना है, वहाँ का रास्ता बड़ा मुश्किल है और कुछ लकी लोग ही वहाँ तक पहुँच पाते हैं।
बगल में खड़े कुछ लोगों ने भी हरिराम का मजाक उड़ाते हुए कहा -
भाई अगर वहाँ जाना इतना ही आसान होता तो हम सब यहाँ झक नहीं मार रहे होते!
लेकिन हरिराम ने किसी की बात नहीं सुनी और अकेला ही चोटी की तरफ बढ़ चला और तीन घंटे बाद वह उस पहाड़ी के शिखर पर था। वहाँ पहुँचने पर पहले से मौजूद लोगों ने उसका स्वागत किया और उसे प्रोत्साहित किया।
हरिराम भी वहाँ पहुँच कर बहुत खुश था अब वह शांति से प्रकृति की ख़ूबसूरती का आनंद ले सकता था।
जाते-जाते हरिराम ने बाकी लोगों से पूछा - एक बात बताइये?
यहाँ पहुंचना इतना मुश्किल तो नहीं था, मेरे विचार से तो जो उस भीड़-भाड़ वाली चोटी तक पहुँच सकता है वह अगर थोड़ी सी और मेहनत करे तो इस चोटी को भी छू सकता है, फिर ऐसा क्यों है कि वहाँ सैकड़ों लोगों की भीड़ है और यहाँ बस मुट्ठी भर लोग?
वहाँ मौजूद एक शिक्षक नवनीत बोला - क्योंकि ज्यादातर लोग बस उसी में खुश हो जाते हैं जो उन्हें आसानी से मिल जाता। वे सोचते ही नहीं कि उनके अन्दर इससे कहीं ज्यादा पाने का इरादा है, और जो थोड़ा पाकर खुश नहीं भी होते वे कुछ अधिक पाने के लिए खतरा नहीं उठाना चाहते। वे डरते हैं कि कहीं ज्यादा के चक्कर में जो हाथ में है वो भी ना चला जाए, जबकि हकीकत ये है कि अगली चोटी या अगली मंजिल पाने के लिए बस जरा सी कोशिश की ज़रुरत पड़ती है!
पर साहस ना दिखा पाने के कारण अधिकतर लोग पूरी लाइफ बस भीड़ का हिस्सा ही बन कर रह जाते हैं, और साहस दिखाने वाली उन मुट्ठी भर लोगों को लकी बता कर खुद को तसल्ली देते रहते हैं।
निष्कर्ष:
अगर आप आज तक वो अगला साहसी कदम उठाने से खुद को रोके हुए हैं तो ऐसा मत करिए क्योंकि, अगली चोटी या अगली मंजिल पाने के लिए बस जरा से और कोशिश की ज़रुरत पड़ती है! खुद को उस कार्य को करने से रोकिये मत, थोडा सा साहस, थोड़ी सी हिम्मत आपको भीड़ से निकाल कर उन मुट्ठी भर लोगों में शामिल कर सकती है जिन्हें दुनिया भाग्यशाली कहती है।