एक राधेश्याम नामक युवक था। स्वभाव का बड़ा ही शांत एवम सुविचारों वाला व्यक्ति था। उसका छोटा सा परिवार था जिसमे उसके माता-पिता, पत्नी एवम दो बच्चे थे। सभी से वो बेहद प्यार करता था।
इसके अलावा वो कृष्ण भक्त था और सभी पर दया भाव रखता था। जरूरतमंद की सेवा करता था। किसी को दुःख नहीं देता था। उसके इन्ही गुणों के कारण श्री कृष्ण उससे बहुत प्रसन्न थे और सदैव उसके साथ रहते थे। और राधेश्याम अपने कृष्ण को देख भी सकता था और बाते भी करता था। इसके बावजूद उसने कभी ईश्वर से कुछ नहीं माँगा। वह बहुत खुश रहता था क्यूंकि ईश्वर हमेशा उसके साथ रहते थे। उसे मार्गदर्शन देते थे। राधेश्याम भी कृष्ण को अपने मित्र की तरह ही पुकारता था और उनसे अपने विचारों को बाँटता था।
एक दिन राधेश्याम के पिता की तबियत अचानक ख़राब हो गई। उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया। उसने सभी डॉक्टर्स के हाथ जोड़े। अपने पिता को बचाने की मिन्नते की। लेकिन सभी ने उससे कहा कि वो ज्यादा उम्मीद नहीं दे सकते। और सभी ने उसे भगवान् पर भरोसा रखने को कहा।
तभी राधेश्याम को कृष्ण का ख्याल आया और उसने अपने कृष्ण को पुकारा। कृष्ण दौड़े चले आये।
राधेश्याम ने कहा: मित्र! तुम तो भगवान हो मेरे पिता को बचा लो।
कृष्ण ने कहा: मित्र! ये मेरे हाथों में नहीं हैं। अगर मृत्यु का समय होगा तो होना तय हैं। इस पर राधेश्याम नाराज हो गया और कृष्ण से लड़ने लगा, गुस्से में उन्हें कौसने लगा। भगवान् ने भी उसे बहुत समझाया पर उसने एक ना सुनी।
तब भगवान् कृष्ण ने उससे कहा: मित्र! मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ लेकिन इसके लिए तुम्हे एक कार्य करना होगा।
राधेश्याम ने तुरंत पूछा कैसा कार्य?
कृष्ण ने कहा: तुम्हे! किसी एक घर से मुट्ठी भर ज्वार लानी होगी और ध्यान रखना होगा कि उस परिवार में कभी किसी की मृत्यु न हुई हो।
राधेश्याम झट से हाँ बोलकर तलाश में निकल गया। उसने कई दरवाजे खटखटायें। हर घर में ज्वार तो होती लेकिन ऐसा कोई नहीं होता जिनके परिवार में किसी की मृत्यु ना हुई हो। किसी का पिता, किसी का दादा, किसी का भाई, माँ, काकी या बहन। दो दिन तक भटकने के बाद भी राधेश्याम को ऐसा एक भी घर नहीं मिला।
तब उसे इस बात का अहसास हुआ कि
मृत्यु एक अटल सत्य है। इसका सामना सभी को करना होता है। इससे कोई नहीं भाग सकता। और वो अपने व्यवहार के लिए कृष्ण से क्षमा मांगता हैं और निर्णय लेता हैं जब तक उसके पिता जीवित हैं उनकी सेवा करेगा।
थोड़े दिनों बाद राधेश्याम के पिता स्वर्ग सिधार जाते हैं। उसे दुःख तो होता हैं लेकिन ईश्वर की दी उस सीख के कारण उसका मन शांत रहता हैं।
दोस्तों इसी प्रकार हम सभी को इस सच को स्वीकार करना चाहिये कि मृत्यु एक अटल सत्य हैं उसे नकारना मुर्खता हैं। दुःख होता हैं लेकिन उसमे फँस जाना गलत, केवल आप ही उस दुःख से पीढ़ित नहीं हैं अपितु सम्पूर्ण मानव जाति उस दुःख से सामना करती ही है। ऐसे सच को स्वीकार कर आगे बढ़ना ही जीवन है।
कई बार हम अपने किसी खास के चले जाने से इतने बेबस हो जाते हैं कि सामने खड़ा जीवन और उससे जुड़े लोग हमें दिखाई ही नहीं पड़ते। ऐसे अंधकार से निकलना मुश्किल हो जाता है। जो मनुष्य मृत्यु के सत्य को स्वीकार कर लेता है उसका जीवन भार विहीन हो जाता है और उसे कभी कोई कष्ट तोड़ नहीं सकता। वो जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ता जाता है।