Download Bhakti Bharat APP
Damodar Astakam - Damodar AstakamDownload APP Now - Download APP NowHanuman Chalisa - Hanuman ChalisaFollow Bhakti Bharat WhatsApp Channel - Follow Bhakti Bharat WhatsApp Channel

नामुमकिन को कैसे मुमकिन बनायें - प्रेरक कहानी (How To Make The Impossible Possible)


Add To Favorites Change Font Size
एक समय की बात है एक राजा के दो बेटे थे, उम्मेदसिंह और रघुवीर सिंह। एक बार दोनों राजकुमार जंगल में शिकार करने गए। रास्ते में एक विशाल नदी थी। दोनों राजकुमारों का मन हुआ कि क्यों ना नदी में नहाया जाये।
यही सोचकर दोनों राजकुमार नदी में नहाने चल दिए। लेकिन नदी उनकी अपेक्षा से कहीं ज्यादा गहरी थी।

रघुवीर सिंह तैरते तैरते थोड़ा दूर निकल गया, अभी थोड़ा तैरना शुरू ही किया था कि एक तेज लहर आई और रघुवीर सिंह को दूर तक अपने साथ ले गयी।

रघुवीर सिंह डर से अपनी सुध बुध खो बैठा गहरे पानी में उससे तैरा नहीं जा रहा था अब वो डूबने लगा था।

अपने भाई को बुरी तरह फँसा देख के उम्मेदसिंह जल्दी से नदी से बाहर निकला और एक लकड़ी का बड़ा लट्ठा लिया और अपने भाई रघुवीर सिंह की ओर उछाला।

लेकिन दुर्भागयवश रघुवीर सिंह इतना दूर था कि लकड़ी का लट्ठा उसके हाथ में नहीं आ पा रहा था।

इतने में सैनिक वहां पहुँचे और राजकुमार को देखकर सब यही बोलने लगे – अब ये नहीं बच पाएंगे , यहाँ से निकलना नामुनकिन है।

यहाँ तक कि उम्मेदसिंह को भी ये अहसास हो चुका था कि अब रघुवीर सिंह नहीं बच सकता, तेज बहाव में बचना नामुनकिन है, यही सोचकर सबने हथियार डाल दिए और कोई बचाव को आगे नहीं आ रहा था। काफी समय बीत चुका था, रघुवीर सिंह अब दिखाई भी नही दे रहा था।

अभी सभी लोग किनारे पर बैठ कर रघुवीर सिंह का शोक मना रहे थे कि दूर से एक सन्यासी आते हुए नजर आये उनके साथ एक नौजवान भी था। थोड़ा पास आये तो पता चला वो नौजवान रघुवीर सिंह ही था।

अब तो सारे लोग खुश हो गए लेकिन हैरानी से वो सब लोग रघुवीर सिंह से पूछने लगे कि तुम तेज बहाव से बचे कैसे ?

सन्यासी ने कहा कि आपके इस सवाल का जवाब मैं देता हूँ - ये बालक तेज बहाव से इसलिए बाहर निकल आया क्यूंकि इसे वहां कोई ये कहने वाला नहीं था कि यहाँ से निकलना नामुनकिन है इसे कोई हताश करने वाला नहीं था, इसे कोई हतोत्साहित करने वाला नहीं था। इसके सामने केवल एक लकड़ी का लट्ठा था और मन में बचने की एक उम्मीद और इसने प्रयत्न जारी रखा और बस इसीलिए ये बच निकला।

नामुमकिन को कैसे मुमकिन बनायें
जिंदगी में भी कुछ ऐसा ही होता है, जब दूसरे लोग किसी काम को असम्भव कहने लगते हैं तो हम भी अपने हथियार डाल देते हैं। हम अपनी क्षमता का आंकलन दूसरों के कहने से करते हैं। आपके अंदर अपार क्षमताएं हैं, किसी के कहने से खुद को कमजोर मत बनाइये। सोचिये विक्रम से अगर बार बार कोई बोलता रहता कि यहाँ से निकलना नामुमकिन है, तुम नहीं निकल सकते, ये असम्भव है तो क्या वो कभी बाहर निकल पाता ? उसने स्वयं पे विश्वास रखा, स्वयं पे उम्मीद थी बस इसी उम्मीद और लगातार प्रयास ने उसे बचाया।
यह भी जानें

Prerak-kahani Impossible Prerak-kahaniPossible Prerak-kahaniSahas Prerak-kahaniMumkin Prerak-kahaniHope Prerak-kahani

अगर आपको यह prerak-kahani पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

Whatsapp Channelभक्ति-भारत वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें »
इस prerak-kahani को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें Add To Favorites
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।

** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

भगवान पर विश्वास को डिगने न दें - प्रेरक कहानी

एक आदमी जब भी दफ्तर से वापस आता, तो कुत्ते के प्यारे से पिल्ले रोज उसके पास आकर उसे घेर लेते थे क्योंकि वो रोज उन्हें बिस्कुट देता था।

गणेश विनायक जी की कथा - प्रेरक कहानी

एक गाँव में माँ-बेटी रहती थीं। एक दिन वह अपनी माँ से कहने लगी कि गाँव के सब लोग गणेश मेला देखने जा रहे हैं..

श्री गणेश एवं बुढ़िया माई की कहानी

एक बुढ़िया माई थी। मिट्टी के गणेश जी की पूजा करती थी। रोज बनाए रोज गल जाए। एक सेठ का मकान बन रहा था..

मीरा की भक्ति ! जब श्री कृष्ण ने अपना श्रृंगार बदला - सत्य कथा

भक्तमाल कथा: मीरा की भक्ति - जब श्री कृष्ण ने अपना श्रृंगार बदला | जीव गोसांई वृंदावन में वैष्णव-संप्रदाय के मुखिया थे। मीरा जीव गोसांई के दर्शन करना चाहती थीं, लेकिन उन्होंने मीरा बाई से मिलने से मना कर दिया।

दुर्लभ मनुष्य जीवन - प्रेरक कहानी

फिर उसने अपनी जेब में हाथ डाल कुछ सौ-सौ के नोट गिने। सामान्य कटोरे की भाँति समझ कर कौड़ियां इक्कट्ठे करने में लगे हुए हैं।..

सूरदास जी की गुरु भक्ति - प्रेरक कहानी

सूर आज अंतिम घडी मे कहता है कि, मेरे जीवन का बाहरी और भीतरी दोनो तरह का अंधेरा मेरे गुरू वल्लभ ने ही हरा। वरना मेरी क्या बिसात थी। मै तो उनका बिना मोल का चेरा भर रहा।

Hanuman Chalisa - Hanuman Chalisa
Shiv Chalisa - Shiv Chalisa
×
Bhakti Bharat APP