जब बच्चे ने ईश्वर के साथ रोटी खाई!
एक 6 साल का छोटा सा बच्चा अक्सर भगवान से मिलने की जिद किया करता था। उसे भगवान् के बारे में कुछ भी पता नही था, पर मिलने की तमन्ना भरपूर थी। उसकी चाहत थी की एक समय की रोटी वो भगवान के साथ बैठकर खाये।
1 दिन उसने 1 थैले में 5-6 रोटियां रखीं और परमात्मा को को ढूंढने के लिये निकल पड़ा।
चलते-चलते वो बहुत दूर निकल आया संध्या का समय हो गया। उसने देखा एक नदी के तट पर एक बुजुर्ग माता बैठी हुई हैं, जिनकी आँखों में बहुत ही गजब की चमक थी, प्यार था, किसी की तलाश थी, और ऐसा लग रहा था जैसे उसी के इन्तजार में वहां बैठी उसका रास्ता देख रहीं हों।
वो 6-7 साल का मासूम बालक बुजुर्ग माता के पास जा कर बैठ गया, अपने थैले में से रोटी निकाली और खाने लग गया।
फिर उसे कुछ याद आया तो उसने अपना रोटी वाला हाथ बूढी माता की ओर बढ़ाया और मुस्कुरा के देखने लगा, बूढी माता ने रोटी ले ली, माता के झुर्रियों वाले चेहरे पे अजीब सी खुशी आगई आँखों में खुशी के आंसू भी थे।
बच्चा माता को देखे जा रहा था, जब माता ने रोटी खाली बच्चे ने 1 और रोटी माता को दे दी। माता अब बहुत खुश थी, बच्चा भी बहुत खुश था। दोनों ने आपस में बहुत प्यार और स्नेह के पल बिताये।
जब रात घिरने लगी तो बच्चा इजाजत लेकर घर की ओर चलने लगा और वो बार-बार पीछे मुडकर देखता! तो पाता बुजुर्ग माता उसी की ओर देख रही होती हैं।
बच्चा घर पहुंचा तो माँ ने अपने बेटे को आया देखकर जोर से गले से लगा लिया और चूमने लगी, बच्चा बहूत खुश था। माँ ने अपने बच्चे को इतना खुश पहली बार देखा तो खुशी का कारण पूछा, तो बच्चे ने बताया माँ ! आज मैंने भगवान के साथ बैठकर रोटी खाई, आपको पता है माँ उन्होंने भी मेरी रोटी खाई, पर माँ भगवान् बहुत बूढ़े हो गये हैं, मैं आज बहुत खुश हूँ माँ..
उधर बुजुर्ग माता भी जब अपने घर पहुँची तो, गाँव वालों ने देखा माता जी बहुत खुश हैं, तो किसी ने उनके इतने खुश होने का कारण पूछा?
माता जी बोलीं मैं 2 दिन से नदी के तट पर अकेली भूखी बैठी थी मुझे पता था भगवान आएंगे और मुझे खाना खिलाएंगे। आज भगवान् आए थे, उन्होंने मेरे सांथ बैठकर रोटी खाई मुझे भी बहुत प्यार से खिलाई, बहुत प्यार से मेरी ओर देखते थे, जाते समय मुझे गले भी लगाया भगवान बहुत ही मासूम हैं बच्चे की तरह दिखते हैं।
इस कहानी का अर्थ बहुत गहराई वाला है, तात्पर्य बस यही है कि दोनों के ही मन में ईश्वर के लिए अगाध सच्चा प्रेम था।
और प्रभु ने दोनों को, दोनों के लिये, दोनों में ही ( ईश्वर) स्वयं को भेज दिया। जब मन ईश्वर भक्ति में रम जाता है तो, हमे हर एक जीव में बस प्रभु की दिखाई देते है।