Download Bhakti Bharat APP
Damodar Astakam - Damodar AstakamDownload APP Now - Download APP NowHanuman Chalisa - Hanuman ChalisaFollow Bhakti Bharat WhatsApp Channel - Follow Bhakti Bharat WhatsApp Channel

भक्तमाल सुमेरु तुलसीदास जी - सत्य कथा (Goswami Tulsidas Bhaktmal Sumeru)


Add To Favorites Change Font Size
भक्तमाल सुमेरु गोस्वामी श्री तुलसीदास जी:
श्री नाभादास जी ने भक्तों की माला अर्थात भक्तमाल की रचना की। अब माला का सुमेरु का चयन करना कठिन हो गया। किस संत को सुमेरु बनाएं इस बात का निर्णय कठिन हो रहा था।
पूज्य श्री अग्रदेवचार्य जी के चरणों में प्रार्थना करने पर उन्होंने प्रेरणा दी कि वृंदावन में भंडारा करो और संतो का उत्सव करो, उसी भंडारे उत्सव में कोई न कोई संत सुमेरु के रूप में प्राप्त हो जायेगा।

सभी तीर्थ धामो में संतो को कृपा पूर्वक भंडारे में पधारने का निमंत्रण भेजा गया। काशी में अस्सी घाट पर श्री तुलसीदास जी को भी निमंत्रण पहुँचा था परंतु उस समय वे काशी में नहीं थे। उस समय वे भारत के तत्कालीन बादशाह अकबर के आमंत्रण पर दिल्ली पधारे थे।

दिल्ली से लौटते समय गोस्वामी तुलसीदास जी वृंदावन दर्शन के लिए पहुंचे। वे श्री वृंदावन में कालीदह के समीप श्रीराम गुलेला नामक स्थान पर ठहर गए। श्री नाभाजी का भंडारे में पधारना अति आवश्यक जानकार गोपेश्वर महादेव ने प्रत्यक्ष दर्शन देकर गोस्वामी जी से भंडारे में जाकर संतो के दर्शन करने का अनुरोध किया।

गोस्वामी जी भगवान् शंकर की आज्ञा पाकर भंडारे में पधारे। गोस्वामी जी जब वहाँ पहुंचे उस समय संतो की पंगत बैठ चुकी थी। स्थान पूरा भरा हुआ था, स्थान पर बैठने की कोई जगह बची नहीं थी।

तुलसीदास उस स्थान पर बैठ गए, जहाँ पूज्यपाद संतों के पादत्राण / जूतियां रखी हुई थीं। परोसने वालों ने उन्हें पत्तल दी और उसमे सब्जियां व पूरियां परोस दीं। कुछ देर बाद सेवक खीर लेकर आया ।

सेवक ने पूछा: महाराज ! आपका पात्र कहाँ है? खीर किस पात्र में परोसी जाये?
तुलसीदास जी ने एक संत की जूती हाथो में लेकर कहा: इसमें परोस दो खीर।

यह सुनते ही खीर परोसने वाला क्रोधित को उठा बोला: अरे राम राम! कैसा साधू है जो कमंडल नहीं लाया खीर पाने के लिए, अपना पात्र लाओ। पागल हो गये हो जो इस जूती में खीर लोगे?

शोर सुनाई देने पर नाभादास जी वह पर दौड़ कर आये। उन्होने सोचा कही किसी संत का भूल कर भी अपमान न हो जाए। नाभादास जी यह बात नहीं जानते थे की तुलसीदास जी वृंदावन पधारे हुए है। उस समय संत समाज में गोस्वामी जी का नाम बहुत प्रसिद्ध था, यदि वे अपना परिचय पहले देते तो उन्हें सिंहासन पर बिठाया जाता परंतु धन्य है गोस्वामी जी का दैन्य।

नाभादास जी ने पूछा: संत भगवान ! आप संत की जूती में खीर क्यों पाना चाहते है?
यह प्रश्न सुनते ही गोस्वामी जी के नेत्र भर आये।

उन्होंने उत्तर दिया: परोसने वाले सेवक ने कहा की खीर पाने के लिए पात्र लाओ। संत भगवान की जूती से उत्तम पात्र और कौनसा हो सकता है? जीव के कल्याण का सरल श्रेष्ठ साधन है की उसे अकिंचन भक्त की चरण रज प्राप्त हो जाए।

प्रह्लाद जी ने कहा है: न अपने आप बुद्धि भगवान में लगती है और न किसी के द्वारा प्रेरित किये जाने पर लगती है। तब तक बुद्धि भगवान में नहीं लगती जब तक किसी आकिंचन प्रेमी रसिक भक्त की चरण रज मस्तक पर धारण नहीं की जाती।

यह जूती परम भाग्यशालिनी है। इस जूती को न जाने कितने समय से संत के चरण की रज लगती आयी है और केवल संत चरण रज ही नहीं अपितु पवित्र व्रजरज इस जूती पर लगी है। यह रज खीर के साथ शरीर के अंदर जाएगी तो हमारा अंत:करण पवित्र हो जाएगा।

संत की चरण रज में ऐसी श्रद्धा देखकर नाभा जी के नेत्र भर आये। उन्होंने नेत्र बंद कर के देखा तो जान गए कि यह तो भक्त चरित्र प्रकट करते समय भक्तमाल लेखन के समय हमारे ध्यान में पधारे हुए महापुरुष है।

नाभाजी ने प्रणाम् कर के कहा: आप तो गोस्वामी श्री तुलसीदास जी है, हम पहचान नहीं पाये।
गोस्वामी जी ने कहा: हां ! संत समाज में दास को इसी नाम से जाना जाता है

परोसने वाले सेवक ने तुलसीदास जी के चरणों में गिरकर क्षमा याचना की। सभी संतो ने गोस्वामी जी की अद्भुत दीनता को प्रणाम् किया।

इसके बाद श्री नाभादास जी ने गोस्वामी तुलसीदास जी को सिंहासन पर विराजमान करके पूजन किया और कहा कि इतने बड़े महापुरुष होने पर भी ऐसी दीनता जिनके हृदय में है, संतो के प्रति ऐसी श्रद्धा जिनके हृदय में है, वे महात्मा ही भक्तमाल के सुमेरु हो सकते है।

संतो की उपस्तिथि में नाभादास जी ने पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी को भक्तमाल सुमेरु के रूप में स्वीकार किया। जो भक्तमाल की प्राचीन पांडुलिपियां जो है, उनमे श्री तुलसीदास जी के कवित्त के ऊपर लिखा है, भक्तमाल सुमेरु श्री गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज
यह भी जानें

Prerak-kahani Shri Ram Prerak-kahaniShri Hanuman Prerak-kahaniTulsidas Prerak-kahaniTrue Story Prerak-kahaniTrue Prerak-kahaniSant Prerak-kahaniBhandara Prerak-kahaniKheer Prasad Prerak-kahaniShoes Prerak-kahaniJunte Prerak-kahaniNabha Das Ji Prerak-kahaniVrindavan Prerak-kahani

अगर आपको यह prerak-kahani पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

Whatsapp Channelभक्ति-भारत वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें »
इस prerak-kahani को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें Add To Favorites
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।

** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

कर्मो का उचित फल - प्रेरक कहानी

कुछ दिन पहले की बात है मैं अपने भाई के घर यानी अपने मायके गयी। वहां अपनी मम्मी और भाभी के साथ बैठ कर बातें कर रही थी।

मैं तो स्वयं शिव हूँ - प्रेरक कहानी

एक था भिखारी! रेल सफर में भीख माँगने के दौरान एक सूट बूट पहने सेठ जी उसे दिखे। उसने सोचा कि यह व्यक्ति बहुत अमीर लगता है...

प्रत्येक वस्तु पर हमारा ही अधिकार हो? - प्रेरक कहानी

एक राजा ने यह घोषणा करवा दिया कि कल सुबह जब मेरे महल का मुख्य दरवाज़ा खोला जायेगा तब जिस शख़्स ने भी महल में जिस वस्तु या जीव को हाथ लगा दिया वह वस्तु या जीव उसकी हो जाएगी।

बच्चे की राजा को 4 शर्तें - प्रेरक कहानी

एक बार एक राजा नगर भ्रमण को गया तो रास्ते में क्या देखता है कि, एक छोटा बच्चा माटी के खिलौनो को कान में कुछ कहता फिर तोड कर माटी में मिला रहा है..

फर्क नजरिये का..: प्रेरक कहानी

मालूम नहीं। यहां पत्थर तोड़ते - तोड़ते जान निकल रही है और इनको यह चिंता है कि यहां क्या बनेगा।

सत्संग की सही शिक्षा - प्रेरक कहानी

एक संत ने अपने दो शिष्यों को दो डिब्बों में मूँग के दाने दिये और कहाः ये मूँग हमारी अमानत हैं। ये सड़े गले नहीं बल्कि बढ़े-चढ़े यह ध्यान रखना...

बुढ़िया माई को मुक्ति दी - तुलसी माता की कहानी

कार्तिक महीने में एक बुढ़िया माई तुलसीजी को सींचती और कहती कि: हे तुलसी माता! सत की दाता मैं तेरा बिडला सीचती हूँ..

Hanuman Chalisa - Hanuman Chalisa
Durga Chalisa - Durga Chalisa
×
Bhakti Bharat APP