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गेहूँ का दाना एक शिक्षक - प्रेरक कहानी (Gehun Ka Dana Ek Teacher)


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गेहूँ का दाना वह शिक्षक है जो मुझे सृष्टि के नियमों को सिखाता है -
मैं एक कहानी कहना चाहूँगा, जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण कहानियों में से एक है। इस कहानी का संबंध संत से है।

एक बार एक राजा युद्ध जीतकर लौट रहा था, तो वह संत के निवास के निकट जा पहुंचा। उसने इस रहस्यदर्शी संत के दर्शन करने की सोची। राजा ने संत के पास जाकर कहा, `मैं आपके पास इसलिए आया हूँ कि शायद आप मुझे सृष्टि और प्रकृति के नियम के विषय में कुछ समझा सकें। मैं यहां पर अधिक समय तो नहीं रुक सकता हूँ, क्योंकि मैं युद्ध स्थल से लौट रहा हूँ, और मुझे जल्दी ही अपने राज्य में वापस पहुंचना है, क्योंकि राज्य के महत्वपूर्ण. मसले महल में मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं।’

संत राजा की ओर देखकर मुस्कुराया और जमीन से गेहूँ का एक दाना उठाकर राजा को दे दिया और उस गेहूँ के दाने के माध्यम से यह बताया कि `गेहूँ के इस छोटे से दाने में, सृष्टि के सारे नियम और प्रकृति की सारी शक्तियां समाई हुई हैं।’

राजा तो संत के इस उत्तर को समझ ही न सका, और जब उसने अपने आसपास खड़े लोगों के चेहरे पर मुस्कान देखी तो वह गुस्से के मारे आग बबूला हो गया। और उसे लगा कि उसका उपहास किया गया है, उसने गेहूँ के उस दाने को उठाकर जमीन पर पटक दिया। और संत से उसने कहा, `मैं मूर्ख था जो मैंने अपना समय खराब किया, और आप से यहां पर मिलने चला आया।’

वर्ष आए और गए। वह राजा एक अच्छे प्रशासक और योद्धा के रूप में खूब सफल रहा, और खूब ही ठाठ बाट और ऐश्वर्य का जीवन जी रहा था। लेकिन रात को वह सोने के लिए अपने बिस्तर पर जाता तो उसके मन में बड़े ही अजीब-अजीब से विचार उठने लगते और उसे परेशान करते `मैं इस आलीशान महल में खूब ठाठ बाट और ऐश्वर्य का जीवन जी रहा हूँ, लेकिन आखिरकार मैं कब तक इस समृद्धि, राज्य, धन दौलत से आनंदित होता रहूँगा? और जब मैं मर जाऊंगा तो फिर क्या होगा? क्या मेरे राज्य की शक्ति, मेरी धन दौलत, संपत्ति मुझे बीमारी से और मृत्यु से बचा सकेगी? क्या मृत्यु के साथ ही सब कुछ समाप्त हो जाता है?`

राजमहल में एक भी आदमी राजा के इन प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सका। लेकिन इसी बीच संत की प्रसिद्धि चारों ओर फैलती चली जा रही थी। इसलिए राजा ने अपने अहंकार को एक तरफ रखकर, धन दौलत के साथ एक बड़ा काफिला संत के पास भेजा और साथ ही अनुरोध भरा निमंत्रण भेजा उसमें उसने लिखा कि `मुझे बहुत अफसोस है, जब मैं अपनी युवावस्था में आपसे मिला था, उस समय मैं जल्दी में था और आपसे लापरवाही से मिला था। उस समय मैंने आपसे अस्तित्व के गूढुतम प्रश्नों की व्याख्या जल्दी करने के लिए कहा था। लेकिन अब मैं बदल चुका हूँ और जिसका उत्तर नहीं दिया जा सकता, उस असंभव उत्तर की मांग मैं नहीं करता। लेकिन अभी भी मुझे सृष्टि के नियम और प्रकृति की शक्तियों को जानने की गहन जिज्ञासा है। जिस समय मैं युवा था उस समय से कहीं अब ज्यादा जिज्ञासा है यह सब जानने की। मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप मेरे महल में आएं। और अगर आपका महल में आना संभव न हो, तो आप अपने सबसे अच्छे शिष्य में से किसी एक शिष्य को भेज दें, ताकि वह मुझे जो कुछ भी इन प्रश्नों के विषय में समझाया जा सकता हो समझा सके।’

थोड़े दिनों के बाद वह काफिला और संदेशवाहक वापस लौट आए। उन्होंने राजा को बताया कि वे संत से मिले। संत ने अपने आशीष भेजे हैं, लेकिन आपने उनको जो खजाना भेजा था, वह उन्होंने वापस लौटा दिया है। संत ने उस खजाने को यह कहकर वापस कर दिया कि उसे तो खजानों का खजाना मिल चुका है। और साथ ही संत ने एक पत्ते में लपेटकर कुछ छोटा सा उपहार राजा के लिए भेजा और संदेशवाहकों से कहा कि वे राजा से जाकर कह दें कि इसमें ही वह शिक्षक है जो कि उसे सब कुछ समझा सकता है।

राजा ने संत के भेजे हुए उपहार को खोला और फिर उसमें से उसी गेहूँ के दाने को पाया गेहूँ का वही दाना जिसे संत ने पहले भी उसे दिया था। राजा ने सोचा कि जरूर इस दाने में कोई रहस्य या चमत्कार होगा, इसलिए राजा ने एक सोने के डिब्बे में उस दाने को रखकर अपने खजाने में रख दिया। हर रोज वह उस गेहूँ के दाने को इस आशा के साथ देखता कि एक दिन जरूर कुछ चमत्कार घटित होगा, और गेहूँ का दाना किसी ऐसी चीज में या किसी ऐसे व्यक्ति में परिवर्तित हो जाएगा जिससे कि वह सब कुछ सीख जाएगा जो कुछ भी वह जानना चाहता है।

महीने बीते, और फिर वर्ष पर वर्ष बीतने लगे, लेकिन कुछ भी चमत्कार घटित न हुआ। अंततः राजा ने अपना धैर्य खो दिया और फिर से बोला, `ऐसा मालूम होता है कि संत ने फिर से मुझे धोखा दिया है। या तो वह मेरा उपहास कर रहा है, या फिर वह मेरे प्रश्नों के उत्तर जानता ही नहीं है, लेकिन मैं उसे दिखा दूंगा कि मैं बिना उसकी किसी मदद के भी प्रश्नों के उत्तर खोज सकता हूँ।’

फिर उस राजा ने एक बड़े भारतीय रहस्यदर्शी के पास अपने काफिले को भेजा, जिसका नाम तशग्रेगाचा था। उसके पास संसार के कोने कोने से शिष्य आते थे, और फिर से उसने उस काफिले के साथ वही संदेशवाहक और वही खजाना भेजा जिसे उसने संत के पास भेजा था।

कुछ महीनों के पश्चात संदेशवाहक उस भारतीय दार्शनिक को अपने साथ लेकर वापस लौटे। लेकिन उस दार्शनिक ने राजा से कहा, `मैं आपका शिक्षक बनकर सम्मानित हुआ हूँ लेकिन यह मैं साफ-साफ बता देना चाहता हूँ कि मैं खास करके आपके देश में इसीलिए आया हूँ, ताकि मैं संत के दर्शन कर सकूं।’

इस पर राजा सोने का वह डिब्बा उठा लाया जिसमें गेहूँ का दाना रखा हुआ था। और वह उसे बताने लगा, `मैंने संत से कहा था कि मुझे कुछ समझाएं सिखाएं। और देखो, उन्होंने यह क्या भेज दिया है मेरे पास। यह गेहूँ का दाना वह शिक्षक है जो मुझे सृष्टि के नियमों और प्रकृति की शक्तियों के विषय में समझाएगां। क्या यह मेरा उपहास नहीं?`

वह दार्शनिक बहुत देर तक उस गेहूँ के दाने की तरफ देखता रहा, और उस दाने की तरफ देखते देखते जब वह ध्यान में डूब गया तो महल में चारों ओर एक गहन मौन छा गया। कुछ समय बाद वह बोला, मैंने यहां आने के लिए जो इतनी लंबी यात्रा की उसके लिए मुझे कोई पश्चात्ताप नहीं है, क्योंकि अभी तक तो मैं विश्वास ही करता था, लेकिन अब मैं जानता हूँ कि संत सच में ही एक महान सदगुरु हैं। गेहूँ का यह छोटा सा दाना हमें सचमुच सृष्टि के नियमों और प्रकृति की शक्तियों के विषय में सिखा सकता है, क्योंकि गेहूँ का यह छोटा सा दाना अभी और यहीं अपने में सृष्टि के नियम और प्रकृति की शक्ति को अपने में समाए हुए है। आप गेहूँ के इस दाने को सोने के डिब्बे में सुरक्षित रखकर पूरी बात को चूक रहे हैं।

अगर आप इस छोटे से गेहूँ के दाने को जमीन में बो दें, जहां से यह दाना संबंधित है, तो मिट्टी का संसर्ग पाकर, वर्षा हवा धूप, और चांद सितारों की रोशनी पाकर, यह और अधिक विकसित हो जाएगा। जैसे कि व्यक्ति की समझ और ज्ञान का विकास होता है, तो वह अपने अप्राकृतिक जीवन को छोड्कर प्रकृति और सृष्टि के निकट आ जाता है, जिससे कि वह संपूर्ण ब्रह्मांड के अधिक निकट हो सके। जैसे अनंत अनंत ऊर्जा के स्रोत धरती में बोए हुए गेहूँ के दाने की ओर उमड़ते हैं, ठीक वैसे ही ज्ञान के अनंत अनंत स्रोत व्यक्ति की ओर खुल जाते हैं, और तब तक उसकी तरफ बहते रहते हैं जब तक कि व्यक्ति प्रकृति और संपूर्ण ब्रह्मांड के साथ एक न हो जाए। अगर गेहूँ के इस दाने को ध्यानपूर्वक देखो, तो तुम पाओगे कि इसमें एक और रहस्य छुपा हुआ है और वह रहस्य है जीवन की शक्ति का। गेहूँ का दाना मिटता है, और उस मिटने में ही वह मृत्यु को जीत लेता है।’

राजा ने कहा, आप जो कहते हैं वह सच है। फिर भी अंत में तो पौधा कुम्हलाएगा और मर जाएगा और पृथ्वी में विलीन हो जाएगा।

उस दार्शनिक ने कहा, `लेकिन तब तक नहीं मरता, जब तक यह सृष्टि की प्रक्रिया को पूरी नहीं कर लेता और स्वयं को हजारों गेहूँ के दानों में परिवर्तित नहीं कर लेता। जैसे छोटा सा गेहूँ का दाना मिटता है तो पौधे के रूप में विकसित हो जाता है, ठीक वैसे ही जब तुम भी जैसे जैसे विकसित होने लगते हो तुम्हारे रूप भी बदलने लगते हैं। जीवन से और नए जीवन निर्मित होते हैं, एक सत्य से और सत्य जन्मते हैं, एक बीज से और बीजों का जन्म होता है। केवल जरूरत है तो एक ही कला सीखने की और वह है मरने की कला। उसके बाद ही पुनर्जन्म होता है। मेरी सलाह है कि हम संत के पास चलें, ताकि वे हमें इस बारे में कुछ अधिक बताएं।’
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