अगस्त्य नाम के ऋषि थे वे समुद्र के किनारे कठोर व्रत कर रहे थे, वहाँ से कुछ दूरी पर एक पक्षी अपने अंडो को से रहा था। उसी समय समुद्र में तूफान सी लहरे उठने लगी पानी चढ़ने लगा और पानी अपने साथ अंडो को बहा ले गया, पक्षी बहुत दुःखी हुआ और उसने प्रतिज्ञा की कि
मैं समुद्र के जल को समाप्त कर दूंगी और अपने चोंच में सागर के जल को भर भर कर फेंकने लगी ऐसा करते करते उसे काफी समय बित गया समुद्र का जल घटा ही नही।
वह दुःखी मन से अगस्त्य मुनि के पास गई और अपनी व्यथा सुना समुद्र को सुखाने की प्रार्थना की। अगस्त्य मुनि को चिन्ता हुई कि मैं कैसे समुद्र के जल को पी कर सुखा सकूंगा,
तब अगस्त्य मुनि ने गणेश जी का स्मरण किया और संकटा चतुर्थी व्रत को पूरा किया। तीन मास व्रत करने से गणेश जी प्रसन्न हो गए और मुनि का मार्ग प्रशस्त किया चौथ व्रत की कृपा से अगस्त्य मुनि ने प्रेम से समुद्र को पी कर सुखा दिया और पक्षी की प्रतिज्ञा को पूरा किया।
अगर आपको यह prerak-kahani पसंद है, तो कृपया
शेयर,
लाइक या
कॉमेंट जरूर करें!
भक्ति-भारत वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें »
इस prerak-kahani को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।
** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें।