एक इल्ली और घुन था। इल्ली बोली आओ घुन कार्तिक स्नान करे, घुन बोला तू ही कार्तिक स्नान कर ले। मैं तो नहीं करूँगा। बाद में इल्ली तो राजा की लड़की के पल्ले के लगकर कार्तिक स्नान करती। घुन ने कार्तिक स्नान नहीं किया।
दोनों मर गये। बाद में इल्ली के कार्तिक स्नान के पुण्य के कारण राजा के घर जन्म हुआ और घुन राजा के घर गधा बन गया।
राजा ने बेटी का विवाह किया। बेटी ससुराल जाने लगी तो उसने अपनी पालकी रुकवाई और राजा से कहा यह गधा मुझे चाहिए। तब राजा ने कहा यह मत ले चाहे और धन दौलत ले ले पर लड़की नहीं मानी। मुझे तो यही चाहिए।
गधे को रथ के बांध दिया तो गधा दौड़ने लगा। महल में पहुँचने पर गधे को महल के नीचे बांध दिया। जब लड़की नीचे उतरती तो गधा कहता मुझे पानी पिलादे तब लड़की ने कहा मैंने पहले ही कहा था कार्तिक स्नान कर ले पर तूने कहा था मैं तो बाजरा खाऊँगा और ठंडा-ठंडा पानी पीऊँगा।
उनको बातें करते राजा ने सुन लिया, जब राजा ने कहा कि आप मुझे सारी बात बताओ तब रानी (लड़की) ने राजा को सारी बात बताई कि मैं पिछले जन्म में इल्ली थी और ये घुन था। तब मैंने कहा तू भी कार्तिक नहा ले पर वह नहीं नहाया। मैं कार्तिक स्नान के पुण्य से राजा के घर लड़की हुई और आपके घर में राज पाठ कर रही हूँ।
तब राजा ने कहा कि कार्तिक स्नान का इतना पुण्य है तो हम दोनों जोड़े से नहायेंगे। रानी-राजा ने अत्यंत प्रसन्न मन से कार्तिक स्नान कर दोनों ने दान–पुण्य किया और सारी नगरी में कहलवा दिया की सब कार्तिक स्नान कर नहाया हुआ पानी घुन पे डालेगे जिससे घुन की मोक्ष हुई।
हे कार्तिक! भगवान श्रीहरि विष्णु जैसा सुख इल्ली को दिया वैसा सबको देना।
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