विंध्याचल मंदिर, जिसे माँ विंध्यवासिनी मंदिर या विंध्याचल धाम के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर जिले के विंध्याचल में गंगा नदी के तट पर स्थित है। यह मंदिर देवी विंध्यवासिनी को समर्पित है और भारत के शक्तिपीठ मंदिरों में से एक है। ऐसा कहा जाता है कि जिस स्थान पर वर्तमान विंध्यवासिनी मंदिर स्थित है, वहां देवी सती के बाएं पैर का अंगूठा गिरा था।
विंध्याचल मंदिर का इतिहास और वास्तुकला
देवी विंध्यवासिनी का नाम विंध्य पर्वत श्रृंखला से लिया गया है, जिसका शाब्दिक अर्थ है, जो विंध्य में निवास करती है। शास्त्रों के अनुसार विंध्याचल नगर को देवी दुर्गा का निवास स्थान भी माना जाता है। इस स्थान के पास अन्य देवताओं को समर्पित कई मंदिर पाए जाते हैं। उनमें से कुछ अष्टभुजी देवी मंदिर और काली खोह मंदिर हैं। ऐसा कहा जाता है कि राक्षस महिषासुर का वध करने के बाद देवी ने रहने के लिए विध्यांचला को चुना।
इस मंदिर का उल्लेख दुर्गा सप्तशती में किया गया है। जिस रात कृष्ण का जन्म हुआ उसी रात यशोदा के गर्भ से देवी दुर्गा का जन्म हुआ। जब कंस ने बच्ची के शरीर को पत्थर से कुचलकर मारने की कोशिश की, तो वह चमत्कारिक रूप से उसकी पकड़ से दूर चली गई और देवी के दिव्य रूप में परिवर्तित हो गई।
विंध्याचल मंदिर के दर्शन समय एवं प्रमुख त्यौहार
मंदिर सप्ताह के 7 दिन सुबह 5 बजे से रात 9 बजे तक दर्शन के लिए खुला रहता है। मंदिर में नवरात्रि मुख्य त्योहार है। नवरात्रि के अवसर पर एक विशाल मेले का भी आयोजन किया जाता है। और यहां भक्तों की भारी भीड़ लगी रहती है। इस अवसर पर देश के कोने-कोने से लोग यहां देवी के दर्शन के लिए आते हैं। यहां मान्यता है कि नवरात्रि के दौरान देवी मंदिर की छत पर स्थापित ध्वजस्तंभ पर निवास करती हैं। इस त्यौहार के दौरान पूरे शहर को दीयों और फूलों से सजाया जाता है।
विंध्याचल मंदिर कैसे पहुंचे
विंध्याचल मंदिर तक सरकारी निजी बसों, टैक्सियों और स्थानीय कारों द्वारा पहुंचा जा सकता है। यह राष्ट्रीय राजमार्ग NH2 के माध्यम से जुड़ा हुआ है। विंध्याचल रेलवे स्टेशन मंदिर से लगभग 1 किमी की दूरी पर स्थित है। मंदिर तक लगभग 9 किमी दूर मिर्ज़ापुर रेलवे स्टेशन से भी पहुंचा जा सकता है।
5 AM - 9 PM
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