अलीगढ़ के सबसे उँचे शिखर वाला मंदिर श्री वार्ष्णेय मंदिर में देव प्रतिमाओं की प्राण-प्रतिष्ठा का आयोजन, बद्रिकाश्रम पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य पूज्यपाद श्री माधवाश्रम जी महाराज के निर्देशानुसार संस्कृत महाविद्यालय, नरवर के प्रमुख आचार्यों द्वारा विधि-विधान से शुभ तिथि चैत्र शुक्ला श्री राम नवमी 12 अप्रैल 2000 को प्रातःकाल विद्याविनायक श्री गणेश जी की पूजा-अर्चना एवं कलश पूजन से प्रारम्भ हुआ था। प्राण-प्रतिष्ठा के आयोजन को पूर्ण संपन्न हेतु, दिनांक 15 अप्रैल 2000 को सभी सुसज्जित देवी देवताओं की प्रतिमाओं को नगर भ्रमण कराया गया।
योगीराज श्री कृष्ण, श्री लक्ष्मी नारायण, श्री सीताराम-लक्षमण-हनुमान एवं अन्य देवी देवताओं की भव्य एवं अलौकिक प्रतिमाओं को जयपुर के अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त कारीगरों द्वारा श्वेत संगमरमरी पत्थर से तराशा गया है। मंदिर के विशाल एवं भव्य प्रवेश द्वार के शीर्ष पर विराजमान श्री अक्रूर जी महाराज की प्रतिमा अलौकिक आनन्द की अनुभूति करने वाली बनाई गई है।
मंदिर स्थापना दिवस (पाटोत्सव), श्री कृष्ण जन्माष्टमी, नन्दोत्सव, दीपावली, अन्नकूट, बसन्त पंचमी एवं होली जैसे महापर्व विशेष रूप से बड़े ही हर्षोल्लास एवं भव्यता से मनाये जाते हैं। कार्तिक मास की अमावस्या को परम्परागत दीपावली महापर्व मन्दिर में मनाये जाने वाला विशेष पर्व है। अलीगढ़ के इस पवित्र मन्दिर को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा घोषित 100 प्रसिद्ध पर्यटक केंद्रों में शामिल किया गया है।
मंदिर में श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व प्रातः दुग्धभिषेक, सांय काल फूल बंगला और मध्य रात्रि 12 बजे कन्हैया जी का अवतरण, जैसे कार्यक्रमों के साथ धार्मिक आस्था, हर्षोल्लास और जबर्दस्त तैयारियां के साथ मनाया जाता है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के तीसरे दिन सभी नगर निवासी नन्दबाबा को बधाई देने हेतु मन्दिर में एकत्रित होते हैं। यह दिवस मन्दिर में नन्दोत्सव के रूप में बड़े ही उल्लास और उमंग से मनाया जाता है। नन्दबाबा और यशोदारानी उपनन्दों के साथ पारम्परिक पोशाकों में नन्दलाला को लेकर मन्दिर में आते हैं।
वृन्दावन की प्रसिद्ध लठामार होली का आयोजन मंदिर में धूमधाम व रंगारंग कार्यक्रम के साथ आयोजित किया जाता है। होली मिलन के पावन अवसर पर समाज में समरसता और सद्भाव की अभूतपूर्व अभिवृद्धि के साथ आने वाले सभी सज्जनों का इत्र लगाकर और ठंडाई पिलाकर स्वागत किया जाता है। होली मिलन के उपरान्त सभी लोग दाल, रोटी का सुरुचिपूर्ण भोग प्रसाद ग्रहण करके ही अपने-अपने घरों को लौटते हैं।
श्री गणेश पूजा महोत्सव को मंदिर बहुत ही धूमधाम से मानता है। श्री गणेश मूर्ति की स्थापना के साथ इस कार्यक्रम का रंगारंग शुभारंभ किया जाता है। और श्री गणेश विसर्जन वार्ष्णेय मंदिर में पूजन के साथ प्रारंभ होता है, तदोप्रान्त शोभायात्रा में परिवर्तित होकर शहर के रामलीला ग्राउंड, दुबे पड़ाव, ओवर ब्रिज होते हुए राजघाट पर जाकर वैदिक रीति के अनुसार विसर्जन की प्रक्रिया सम्पन्न होती है। प्रत्येक वर्ष श्रावण मास को श्री वार्ष्णेय मंदिर जबरदस्त तैयारी से मानता है। जहाँ सावन के पहले सोमवार पर मंदिर परिसर स्थित शिवालय में जलाभिषेक की विशेष व्यवस्था की जाती है तथा प्रतिदिन सवामनी प्रसाद का कार्यक्रम रखा जाता है।
श्री वार्ष्णेय मंदिर
श्री वार्ष्णेय मंदिर
श्री वार्ष्णेय मंदिर
श्री वार्ष्णेय मंदिर
श्री वार्ष्णेय मंदिर
श्री वार्ष्णेय मंदिर
श्री वार्ष्णेय मंदिर
श्री वार्ष्णेय मंदिर
श्री वार्ष्णेय मंदिर
श्री वार्ष्णेय मंदिर
श्री वार्ष्णेय मंदिर
श्री वार्ष्णेय मंदिर
श्री वार्ष्णेय मंदिर
12 April 2000
प्रथम प्राण प्रतिष्ठा समारोह की सुरुआत।
16 April 2000
प्रथम प्राण प्रतिष्ठा समारोह।
22 April 2005
श्रीमती सावित्री वार्ष्णेय द्वारा गौशाला का उद्घाटन।
श्री वार्ष्णेय मंदिर पाटोत्सव समापन पर हुआ विशाल भंडारा 2014
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