श्रीनाथजी मंदिर राजस्थान राज्य के नाथद्वार शहर का एक विश्व प्रसिद्ध मंदिर है, मंदिर में भगवान कृष्ण का श्रीनाथजी स्वरुप सात वर्ष के बालक का है। नाथद्वार उदयपुर से 48 किमी की दूरी पर बनास नदी के तट पर स्थित है। नाथद्वार का श्रीनाथजी मंदिर भगवान के श्रृंगार एवं भोग के लिए प्रसिद्ध है।
मंदिर में विग्रह को प्रत्येक दिन एक नई पोशाक एवं तिथि के अनुरूप शृंगार धराया जाता है। श्रीनाथजी के विग्रह की पोशाकें, श्रृंगार एवं उनके खिलौनों में इतनी विविधता है कि कोई भी भक्त अपने समस्त जीवन काल में एक जैसी छवि दुवारा नहीं देख सकता है। भगवान के खिलौने उच्चकोटि की घातुओं, हाथी के दांतों, सोने एवं चाँदी से निर्मित होते हैं। श्रीनाथजी को प्रत्येक प्रहर की पूजा के समय अलग-अलग राग एवं भोग लगाए जाते हैं, जोकि मंदिर समिति द्वारा पाहिले से निर्धारित हैं।
नाथद्वार श्रीनाथजी मंदिर का इतिहास और वास्तुकला
नाथद्वार मंदिर की कहानी मीरा बाई के समय से जुड़ी है और हिंदू पौराणिक इतिहास के लिए महत्वपूर्ण है। श्रीनाथजी मंदिर की उत्पत्ति की एक दिलचस्प कहानी है जो दोनों दुनियाओं - वास्तविकता और किंवदंती - का सबसे अच्छा मिश्रण है। इसे वृन्दावन के नंद महाराज के मंदिर की तर्ज पर डिजाइन किया गया है। इसलिए इसे नंदभवन या नंदालय भी कहा जाता है।
मंदिर के प्रमुख आराध्य श्रीनाथजी की छवि, भगवान कृष्ण के सात वर्षीय बाल अवतार हैं, जिन्हें प्यार से अन्यत्र गोपाल कहा जाता है। श्रीनाथजी की पूजा सबसे पहले वल्लभाचार्य द्वारा वृंदावन के गोवर्धन पर्वत में की गई थी। श्रीनाथजी का विग्रह काले रंग के पत्थर रूप मे, 12 शताब्दी ईसा पूर्व में स्वयं प्रकट हुई थी।
इंद्र देव के प्रकोप से बचाने हेतु भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। श्रीनाथजी के विग्रह की छवि ठीक वैसी ही है, जैसी छवि भगवान श्री कृष्ण की गोवर्धन पर्वत धारण करते समय थी।
बाद में, विग्रह को मुगल बादशाह औरंगजेब की पहुंच से दूर रखने के लिए, इसे वृन्दावन से पूर्व-निर्धारित स्थान पर स्थानांतरित किया जा रहा था, लेकिन रास्ते में, मूर्ति ले जा रही गाड़ी के पहिए मिट्टी में गहराई तक धंस गए। वही स्थान जहां अब मंदिर खड़ा है। साथ चल रहे पुजारियों ने इसे इस स्थान पर रहने की भगवान की इच्छा के रूप में दर्शाया, और इस प्रकार 1672 के आसपास मेवाड़ के महाराणा राज सिंह की देखरेख और संरक्षण में यहाँ श्रीनाथजी मंदिर की स्थापना की गई।
मंदिर के शिखर पर लगे सात झंडे पुष्टिमार्ग संप्रदाय के सात सदनों का प्रतिनिधित्व करते हैं। मंदिर को स्थानीय तौर पर श्रीनाथजी की हवेली कहा जाता है। मंदिर परिसर में दूध, मिठाई, फूल, आभूषणों के लिए अलग-अलग भंडार कक्ष और एक रसोईघर, अस्तबल, खजाना और ड्राइंग रूम भी हैं।
मंदिर में मदन मोहन और नवनीत प्रिया के साथ-साथ अन्य देवी देवताओं को समर्पित सहायक मंदिर भी हैं। मूर्ति गोवर्धन पर्वत को उठाने की प्रतिष्ठित स्थिति में खड़ी है, एक हाथ उसके सिर के ऊपर और दूसरा उसकी कमर पर एक मुट्ठी में रखा हुआ है, जो एक काले मोनोलिथ में खुदी हुई है। नाथद्वारा में अन्य प्रसिद्ध मंदिर हैं श्री नवनीतप्रियाजी मंदिर, श्री विट्ठलनाथजी मंदिर, गणेश टेकरी मंदिर, वनमालीजी मंदिर, मदनमोहनजी मंदिर, यमुनाजी मंदिर और शिव मूर्ति (स्टैच्यू ऑफ बिलीफ)।
नाथद्वार श्रीनाथजी मंदिर का दर्शन समय
मंदिर का दर्शन समय प्रातः 5:45 से शाम 6:30 बजे तक होता है। अनुष्ठान मंगला आरती से शुरू होता है जब मूर्ति दिन के पहले दर्शन के लिए प्रकट होती है। श्रृंगार समारोह श्रृंगार के बाद मंगला आरती होता है, जिसके बाद ग्वाल होता है, जो देवता के लिए मध्य-सुबह का नाश्ता है। इसके बाद राजभोग है - दोपहर का भोजन और फिर आता है उत्थान - दोपहर के विश्राम का समय। उसके बाद भोग - भगवान का रात्रिभोज, संध्या आरती - अंतिम पूजा और भगवान के शयन का समय होता है।
नाथद्वार श्रीनाथजी में प्रमुख त्यौहार
श्रीनाथजी मंदिर पूरे वर्ष खुला रहता है, लेकिन होली और जन्माष्टमी के दौरान स्थानीय लोगों द्वारा विशेष उत्सव मनाया जाता है। अन्नकुट्टा भगवान कृष्ण के गोवर्धन पर्वत उठाने से जुड़ा त्यौहार है जिसे बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। हालाँकि, इन त्योहारों के दौरान मंदिर में देश भर से आए भक्तों की भीड़ रहती है। श्रीनाथजी मंदिर अपनी पाक दावत के लिए भी जाना जाता है, जिसकी अच्छी मांग है और यह हर साल सैकड़ों आगंतुकों को सेवा प्रदान करता है।
नाथद्वार श्रीनाथजी मंदिर तक कैसे पहुँचें?
निकटतम रेलवे स्टेशन मावली जंक्शन है जो 30 किलोमीटर और उदयपुर लगभग 50 किलोमीटर दूर है। नाथद्वार का निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर है, जो लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर है। नाथद्वार तक उदयपुर सहित पड़ोसी शहरों से राज्य के स्वामित्व वाली बसों, निजी या किराए की कारों और कैब द्वारा पहुंचा जा सकता है।
5:45 AM - 6:30 PM
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