मुक्तेश्वर से 1 किलोमीटर सड़क मार्ग से आते हुए 100 सीढ़ियो की चढ़ाई के बाद आप पहुचेंगे भगवान शिव के मंदिर मुक्तेश्वर धाम। मंदिर मे चारों ओर मन्नत माँगने वाले भक्तों द्वारा चढ़ाई माता की चुन्नियाँ तथा छोटी-बड़ी बहुत सारी घंटियाँ, मंदिर के वातावरण को और भी भक्तिमय बना देता है।
मंदिर का सबसे प्रसिद्ध त्यौहार शिवरात्रि है, शिवरात्रि के दिन बहुत अधिक संख्या मे श्रद्धालु यहाँ दर्शन हेतु आते हैं। साथ ही साथ मासिक शिवतेरश पर भी यहाँ दर्शन करने वाले भक्तों के संख्या कुछ कम नहीं होती है।
मंदिर मे भगवान शिव, सफेद संगमरमर के साथ सिद्धेश्वर स्वरूप मे स्थापित हैं। मंदिर मे माता रानी के साथ-साथ भगवान श्री राम-जानकी-लक्ष्मण एवं हनुमान जी भी विराजमान हैं। मंदिर में एक अखंड घूना भी निरंतर प्रज्वलित रहता है। ब्रहलीन सिद्ध संत पूज्या श्री मुक्तेश्वर महाराज की समधी स्थल भी है।
मंदिर परिसर मे ही प्रसाद की सुविधा के साथ-साथ जलपान सुविधा के लिए छोटी सी दुकान भी है। मंदिर परिसर के आस-पास प्रायः बहुत संख्या मे लंगूरों को देखा जा सकता है।
मन्दिर के अंदर से ही मुक्तेश्वर का सबसे प्रसिद्ध पर्यटक स्थल, चौली की जाली अथवा चौथी की जाली के लिए रास्ता जाता है हैं। जनश्रुतियों के अनुसार यहाँ देवी और राक्षस के बीच युद्ध हुआ था। यहाँ एक पहाड़ की चोटी है जिसकी सबसे ऊपर वाली चट्टान पर एक गोल छेद है। कहा जाता है कि अगर कोई निःसंतान स्त्री इस छेद में से निकल जाए तो उसे संतान की प्राप्ति होती है। परंतु भक्ति-भारत आपको इसे करने की सलाह नहीं देता है, इसके स्थान पर आप मंदिर के प्रमुख महंत बाबाजी से संतान सुख का अन्य उपाय पूछ सकते हैं।
एक अन्य जनश्रुति के अनुसार पांडवो ने यहाँ आकर मुक्ति प्राप्त की थी इसलिए इसे मुक्तेश्वर धाम के नाम से जाना जाता है।
साफ मौसम होने की स्थिति में मंदिर से हिमालय पर्वत की नालकंठ, नंदादेवी और त्रिशूल आदि पर्वतश्रेणियां देखी जा सकती हैं। मंदिर की ओर आते हुए रास्ते मे आपको आडू, खुमानी और सेब के बगीचे भी दिख जाएगे।
आस-पास के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल:
मंदिर के बिल्कुल नजदीक इंडियन वेटरनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट है जहां जानवरों पर रिसर्च की जाती है। इस इंस्टीट्यूट की स्थापना सन् 1893 हुई थी। मुक्तेश्वर उत्तराखण्ड के नैनीताल जिले में स्थित है। यह कुमाऊँ की पहाडियों में 2290 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
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