जीण माता को माँ दुर्गा का अवतार माना जाता है। जीण माता मंदिर एक जाग्रत पीठ है। जीण का अर्थ है - एकान्त, शून्य, जंगल आदि। जीण माता मंदिर अरावली पहाड़ियों में राजस्थान के सीकर जिले में रलावता नामक स्थान पर स्थित है।
जीण माता ब्राह्मणों, यादवों, अहीर, अग्रवाल, मीणा, जाटों, शेखावाटी राजपूतों और राजस्थान के जांगीर की कुलदेवी हैं। बहुत सारे समाज एवं कुल की कुलदेवी होने के कारण मंदिर में नवजात बालकों का झडूला, मुण्डन संस्कार अर्थात केश मुण्डाना कराया जाता है। मन्दिर में माता के सेवा हेतु अखण्डदीप जलती रहती है।
जीणमाता मंदिर सालासर और खाटूश्यम जी के बीच में स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिये लगभग 300 सीढियों को चढ़ाना होता है। मंदिर के ऊपर वाली पहाड़ी की चोटी पर हर्ष भैरव नाथ का मंदिर है। जिन्हें जीण माता का भाई माना जाता है।
वैसे तो जीण माता मंदिर में भक्त पूजा-अर्जना एवं दर्शन हेतु पूरे साल ही आते रहते है। परंतु नवरात्रि के शुभ अवसर पर यहाँ भक्तों का उत्साह देखते ही बनाता है। मंदिर प्रशासन द्वारा इस पर्व के लिये विशेष पूजा एवं प्रशासनिक व्यवस्था की जाती है।
नवरात्रि के पवित्र पर्व पर मंदिर में मेला का आयोजन किया जाता है। जैसा कि माता के सभी भक्त जानते ही हैं कि माता रानी के मंदिर में नारियल चढ़ने की एक सुन्दर परम्परा है वैसे ही यहाँ के मंदिर परिसर में भक्तों द्वारा नारियल अत्यधिक मात्रा में चढ़ाये जाते हैं। नवरात्रि के दौरान मंदिर परिसर में चढ़ाये हुए लाखों नारियल देखे जा सकते हैं।
धार्मिक स्थल होने के साथ-साथ यह स्थान एक पिक्कनिक, टूरिस्ट एवं ऐतिहासिक स्थल भी है। इस कारण बच्चे, बूढ़े और नवयुवक सभी आयु के लोग मंदिर दर्शन में अपने रुचि बढ-चढ कर दिखते हैं। महाभारत काल के दौरान पांडवों का माता की पूजा हेतु इस प्रांगण में आने का उल्लेख किया जाता है। मंदिर के परिसर से चारों ओर हरियाली, घने जंगल एवं पहाड़ दिखने से यहाँ का द्रश्य और भी अद्भुत लगता है।
मंदिर आने वाले भक्तों के ठहरने हेतु मंदिर ट्रस्ट एवं अन्य संस्थानों द्वारा बड़ी संख्या में धर्मशाला उपलब्ध कराई गई हैं। मंदिर के आस-पास पूजा का सामान, बच्चों के खिलौने, नश्ता, स्ट्रीट फूड, स्वीट्स एवं चाय-पानी की सुविधा उपलब्ध है।
एक जनश्रुति के अनुसार देवी जीण माता ने सबसे बड़ा चमत्कार मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब को दिखाया था। बुरडक गोत्र के बडवा श्री भवानीसिंह राव के अभिलेखों में जीण माता के सम्बन्ध में यह विवरण उपलब्ध है कि दिल्ली के बादशाह औरंगज़ेब ने शेखावाटी के मंदिरों को तोड़ने के लिए एक विशाल सेना भेजी थी। यह सेना हर्ष पर्वत पर शिव व हर्षनाथ भैरव का मंदिर खंडित कर जीण मंदिर को खंडित करने आगे बढ़ी। उस समय हर्ष के मंदिर की पूजा गूजर लोग तथा जीणमाता के मंदिर की पूजा तिगाला जाट करते थे। कहते हैं कि हमले के तुरन्त बाद जीणमाता की मक्खियों (भंवरों) ने बादशाह की सेना पर हमला बोल दिया। मक्खियों ने बादशाह की सेना का पीछा दिल्ली तक किया और सेना को बहुत नुकसान पहुँचाया। मधुमखियों के दंशों से बेहाल पूरी सेना घोड़े आदि और मैदान छोड़कर भाग गई।
औरंगज़ेब को चमत्कार दिखाने के बाद जीण माता “भौरों की देवी” भी कही जाने लगी। एक अन्य जनश्रुति के अनुसार औरंगज़ेब को कुष्ठ रोग हो गया था अतः उसने कुष्ठ निवारण हो जाने पर माँ जीण के मंदिर में एक स्वर्ण छत्र चढाना बोला था। जो आज भी मंदिर में विद्यमान है।
Source: jeenmata.com
** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें।