बांके बिहारी मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के वृन्दावन शहर में स्थित है। यह मंदिर बांके बिहारी को समर्पित है जिन्हें राधा और कृष्ण का संयुक्त रूप माना जाता है। श्री बांके बिहारी जी मंदिर वृंदावन में सबसे अधिक देखे जाने वाले मंदिरों में से एक है। यह भगवान के प्रति अटूट आस्था और भक्ति का प्रतीक है। हर दिन हज़ारों भक्त इस सदियों पुराने मंदिर में श्री बांके बिहारी जी की पूजा करने आते हैं, जिन्हें ब्रजवासी प्यार से 'बिहारी जी' और 'ठाकुर जी' कहकर पुकारते हैं।
बांके बिहारी मंदिर का इतिहास और वास्तुकला
श्री बांके बिहारी जी मंदिर का निर्माण वर्ष 1862 में हुआ था। शुरू में निधिवन के एक मंदिर में भगवान की पूजा की जाती थी। बाद में नए परिसर के निर्माण के बाद श्री बांके बिहारी जी की मूर्ति को वर्तमान मंदिर में स्थानांतरित कर दिया गया।
बांके बिहारी के प्रतीक की पूजा मूल रूप से स्वामी हरिदास द्वारा कुंजबिहारी नाम से की जाती थी। छवि की त्रिभंग मुद्रा के कारण उनके शिष्यों ने उन्हें बांके बिहारी नाम दिया। प्रतीक का प्राकट्य बिहार पंचमी पर मनाया जाता है। मंदिर की वास्तुकला राजस्थानी शैली से प्रभावित है तथा मेहराब और स्तंभ इसकी भव्यता में चार चांद लगाते हैं।
बांकेबिहारी मंदिर में बांकेबिहारी की पूजा छोटे बच्चे के रूप में की जाती है। इस प्रकार, सुबह-सुबह कोई आरती नहीं की जाती है और मंदिर परिसर के अंदर कहीं भी घंटियाँ नहीं लटकाई जाती हैं क्योंकि इससे बांके बिहारी को परेशानी हो सकती है। केवल कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर, मंगला आरती की जाती है।
बांके बिहारी मंदिर के दर्शन का समय
बांके बिहारी मंदिर दर्शन के लिए पूरे सप्ताह खुला रहता है और दर्शन का समय ग्रीष्मकाल: प्रातः 7.45 बजे से दोपहर 12.00 बजे तक तथा सायं 5.30 बजे से रात्रि 9.30 बजे तक और शीतकाल: प्रातः 8.45 बजे से दोपहर 1.00 बजे तक तथा सायं 4.30 बजे से रात्रि 8.30 बजे तक। अपनी परंपरा में अद्वितीय, बांके बिहारी मंदिर में पीठासीन देवता (श्री बांके बिहारी जी) के दर्शन कभी भी निरंतर नहीं होते हैं, बल्कि उन पर पर्दा डालकर बीच-बीच में रोक दिए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यदि कोई भक्त भगवान की आँखों में बहुत देर तक देखता है, तो वह बेहोश हो जाता है। श्री बांके बिहारी का असाधारण आकर्षण और सुंदरता भक्तों के लिए बाधित दर्शन का कारण है।
बांकेबिहारी मंदिर के प्रमुख उत्सव
श्री कृष्ण जन्माष्टमी, हरियाली तीज या झूलावन यात्रा, होली, ढोलंडी, राधाष्टमी बांके बिहारी मंदिर के प्रमुख त्योहार हैं। बिहारी जी की सेवा अपनी परंपरा में विशेष और काफी विशिष्ट है। हर दिन तीन चरणों में सेवा की जाती है: श्रृंगार, राजभोग और शयन। श्री बांके बिहारी जी मंदिर में मंगला आरती की परंपरा नहीं है, बल्कि भगवान कृष्ण को एक बच्चे की तरह माना जाता है और सुबह-सुबह उन्हें परेशान नहीं किया जाता। पुजारी अपने छोटे भगवान की सुविधा को ध्यान में रखते हुए तेज़ घंटियाँ भी नहीं बजाते।
वर्ष में केवल एक बार, बांके बिहारी अपने हाथों में बांसुरी धारण करते हैं, जो शरद पूर्णिमा के अवसर पर होता है। श्रावण माह में केवल एक बार बांकेबिहारी को झूले में बिठाया जाता है।
श्री बाँकेबिहारी जी मंदिर कैसे पहुँचें?
बांके बिहारी जी मंदिर वृन्दावन में स्थित है और मथुरा-वृन्दावन से ऑटो टैक्सी लेकर आसानी से पहुंचा जा सकता है। निकटतम रेलवे स्टेशन मथुरा जंक्शन है जो देश के प्रमुख शहरों से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है और बिहारी जी मंदिर से लगभग 12 किलोमीटर दूर है। निकटतम हवाई अड्डा इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, नई दिल्ली है जो मंदिर से लगभग 161 किलोमीटर दूर है।
श्री बाँकेबिहारी दर्शन के अनुभव:
❀ भगवान बांके बिहारी की मूर्ति मंत्रमुग्ध कर देने वाली है और मंदिर की वास्तुकला समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाती है। भक्त भजन गाते हैं और शुद्ध आनंद में प्रार्थना करते हैं।
❀ बांके बिहारी मंदिर की सबसे खास बात यह है कि भगवान के दर्शन लंबे समय तक नहीं किए जाते। ऐसा माना जाता है कि भगवान के दर्शन बहुत लंबे समय तक करना संभव नहीं होता, क्योंकि उनकी मोहक छवि से भक्त सम्मोहित हो जाते हैं।
❀ होली में रंगों की बौछार और कृष्ण भक्ति का माहौल देखने लायक होता है। भगवान को रंगों से सराबोर किया जाता है और भक्त पूरी श्रद्धा से इस अनोखी होली का हिस्सा बनते हैं।
❀ बांके बिहारी मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक ऐसा स्थान है जहाँ भक्ति, आध्यात्मिकता और कृष्ण की लीलाओं का अनुभव होता है।
7:45 AM - 9:30 PM
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