Follow Bhakti Bharat WhatsApp Channel
गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र - Gajendra Moksham StotramDownload APP Now - Download APP NowHanuman Chalisa - Hanuman ChalisaFollow Bhakti Bharat WhatsApp Channel - Follow Bhakti Bharat WhatsApp Channel

कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 30 (Kartik Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 30)


कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 30
Add To Favorites Change Font Size
कार्तिक मास की कथा,
करती भव से पार ।
तीसवाँ अध्याय लिखूँ,
हुई हरि कृपा अपार ॥
भगवान श्रीकृष्ण सत्यभामा से बोले- हे प्रिये! नारदजी के यह वचन सुनकर महाराजा पृथु बहुत आश्चर्यचकित हुए। अन्त में उन्होंने नारदजी का पूजन करके उनको विदा किया। इसीलिए माघ, कार्तिक और एकादशी- यह तीन व्रत मुझे अत्यधिक प्रिय हैं। वनस्पतियों में तुलसी, महीनों में कार्तिक, तिथियों में एकादशी और क्षेत्रों में प्रयाग मुझे बहुत प्रिय हैं। जो मनुष्य इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर इनका सेवन करता है वह मुझे यज्ञ करने वाले मनुष्य से भी अधिक प्रिय है। जो मनुष्य विधिपूर्वक इनकी सेवा करते हैं, मेरी कृपा से उन्हें समस्त पापों से छुटकारा मिल जाता है।

भगवान श्रीकृष्ण के वचन सुनकर सत्यभामा ने कहा- हे प्रभो! आपने बहुत ही अद्भुत बात कही है कि दूसरे के लिए पुण्य के फल से कलहा की मुक्ति हो गयी। यह प्रभावशाली कार्तिक मास आपको अधिक प्रिय है जिससे पतिद्रोह का पाप केवल स्नान के पुण्य से ही नष्ट हो गया। दूसरे मनुष्य द्वारा किया हुआ पुण्य उसके देने से किस प्रकार मिल जाता है, यह आप मुझे बताने की कृपा करें।

श्रीकृष्ण भगवान बोले- प्रिये! जिस कर्म द्वारा बिना दिया हुआ पुण्य और पाप मिलता है उसे ध्यानपूर्वक सुनो।

सतयुग में देश, ग्राम तथा कुलों को दिया पुण्य या पाप मिलता था किन्तु कलियुग में केवल कर्त्ता को ही पाप तथा पुण्य का फल भोगना पड़ता है। संसर्ग न करने पर भी वह व्यवस्था की गई है और संसर्ग से पाप व पुण्य दूसरे को मिलते हैं, उसकी व्यवस्था भी सुनो।

पढ़ाना, यज्ञ कराना और एक साथ भोजन करने से पाप-पुण्य का आधा फल मिलता है। एक आसन पर बैठने तथा सवारी पर चढ़ने से, श्वास के आने-जाने से पुण्य व पाप का चौथा भाग जीवमात्र को मिलता है। छूने से, भोजन करने से और दूसरे की स्तुति करने से पुण्य और पाप का छठवाँ भाग मिलता है। दूसरे की निन्दा, चुगली और धिक्कार करने से उसका सातवाँ भाग मिलता है। पुण्य करने वाले मनुष्यों की जो कोई सेवा करता है वह सेवा का भाग लेता है और अपना पुण्य उसे देता है।

नौकर और शिष्य के अतिरिक्त जो मनुष्य दूसरे से सेवा करवाकर उसे पैसे नहीं देता, वह सेवक उसके पुण्य का भागी होता है। जो व्यक्ति पंक्ति में बैठे हुए भोजन करने वालों की पत्तल लांघता है, वह उसे(जिसकी पत्तल उसने लांघी है) अपने पुण्य का छठवाँ भाग देता है। स्नान तथा ध्यान आदि करते हुए मनुष्य से जो व्यक्ति बातचीत करता है या उसे छूता है, वह अपने पुण्य का छठवाँ भाग दे डालता है।

जो मनुष्य धर्म के कार्य के लिए दूसरों से धन मांगता है, वह पुण्य का भागी होता है। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार कि दान करने वाला पुण्य का भागी होता है। जो मनुष्य धर्म का उपदेश करता है और उसके बाद सुनने वाले से याचना करता है, वह अपने पुण्य का छठवाँ भाग उसे दे देता है। जो मनुष्य दूसरों का धन चुराकर उससे धर्म करता है, वह चोरी का फल भोगता है और शीघ्र ही निर्धन हो जाता है और जिसका धन चुराता है, वह पुण्य का भागी होता है।

बिना ऋण उतारे जो मनुष्य मृत्यु को प्राप्त होता है, उनको ऋण देने वाले सज्जन पुरुष पुण्य के भागी होते हैं। शिक्षा देने वाला, सलाह देने वाला, सामग्री को जुटाने वाला तथा प्रेरणा देने वाला, यह पाप और पुण्य के छठे भाग को प्राप्त करते हैं। राजा प्रजा के पाप-पुण्य के षष्ठांश का भोगी होता है, गुरु शिष्यों का, पति पत्नी का, पिता पुत्र का, स्त्री पति के लिए पुण्य का छठा भाग पाती है। पति को प्रसन्न करने वाली आज्ञाकारी स्त्री पति के लिए पुण्य का आधा भाग ले लेती है।

जो पुण्यात्मा पराये लोगों को दान करते हैं, वह उनके पुण्य का छठा भाग प्राप्त करते हैं। जीविका देने वाला मनुष्य जीविका ग्रहण करने वाले मनुष्य के पुण्य के छठे भाग को प्राप्त करता है। इस प्रकार दूसरों के लिए पुण्य अथवा पाप बिना दिये भी दूसरे को मिल सकते हैं किन्तु यह नियम जो कि मैंने बतलाये हैं, ये कलियुग में लागू नहीं होते। कलियुग में तो एकमात्र कर्त्ता को ही अपने पाप व पुण्य भोगने पड़ते हैं। इस संबंध में एक बड़ा पुराना इतिहास है जो कि पवित्र भी है और बुद्धि प्रदान करने वाला कहा जाता है, उसे ध्यानपूर्वक सुनो –

यह इतिहास 31वें अध्याय में बताया जाएगा।
यह भी जानें

Katha Kartik Mas KathaKartik KathaKartik Month KathaKrishna KathaShri Hari KathaShri Vishnu KathaISKCON Katha

अगर आपको यह कथाएँ पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

Whatsapp Channelभक्ति-भारत वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें »
इस कथाएँ को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें Add To Favorites
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।

** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

अथ श्री बृहस्पतिवार व्रत कथा | बृहस्पतिदेव की कथा

भारतवर्ष में एक राजा राज्य करता था वह बड़ा प्रतापी और दानी था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्‌मणों...

अन्नपूर्णा माता व्रत कथा

मां अन्नपूर्णा माता का महाव्रत मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष पंचमी से प्रारम्भ होता है और मार्गशीर्ष शुक्ल षष्ठी को समाप्त होता है। यह उत्तमोत्तम व्रत सत्रह दिनों का होता है और कई भक्त 21दिन तक भी पालन करते हैं।

मंगलवार व्रत कथा

सर्वसुख, राजसम्मान तथा पुत्र-प्राप्ति के लिए मंगलवार व्रत रखना शुभ माना जाता है। पढ़े हनुमान जी से जुड़ी मंगलवार व्रत कथा...

सोमवार व्रत कथा

किसी नगर में एक धनी व्यापारी रहता था। दूर-दूर तक उसका व्यापार फैला हुआ था। नगर के सभी लोग उस व्यापारी का सम्मान करते थे..

मार्गशीर्ष संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा

पार्वती जी ने गणेश जी से पूछा कि अगहन कृष्ण चतुर्थी संकटा कहलाती है, उस दिन किस गणेश की पूजा किस रीति से करनी चाहिए?...

गजेंद्र और ग्राह मुक्ति कथा

संत अनंतकृष्ण बाबा जी के पास एक लड़का सत्संग सुनने के लिए आया करता था। संत से प्रभावित होकर बालक द्वारा दीक्षा के लिए प्रार्थना करने..

रोहिणी शकट भेदन, दशरथ रचित शनि स्तोत्र कथा

प्राचीन काल में दशरथ नामक प्रसिद्ध चक्रवती राजा हुए थे। राजा के कार्य से राज्य की प्रजा सुखी जीवन यापन कर रही थी...

Hanuman Chalisa - Hanuman Chalisa
Om Jai Jagdish Hare Aarti - Om Jai Jagdish Hare Aarti
×
Bhakti Bharat APP