Follow Bhakti Bharat WhatsApp Channel
Subscribe BhaktiBharat YouTube Channel - Subscribe BhaktiBharat YouTube ChannelHanuman Chalisa - Hanuman ChalisaDownload APP Now - Download APP NowFollow Bhakti Bharat WhatsApp Channel - Follow Bhakti Bharat WhatsApp Channel

हाथी का शीश ही क्यों श्रीगणेश के लगा? (Hathi Ka Sheesh Hi Kiyon Shri Ganesh Ke Laga?)


हाथी का शीश ही क्यों श्रीगणेश के लगा?
Add To Favorites Change Font Size
गज और असुर के संयोग से एक असुर जन्मा था, गजासुर। उसका मुख गज जैसा होने के कारण उसे गजासुर कहा जाने लगा। गजासुर शिवजी का बड़ा भक्त था और शिवजी के बिना अपनी कल्पना ही नहीं करता था। उसकी भक्ति से भोले भंडारी गजासुर पर प्रसन्न हो गए वरदान मांगने को कहा।
गजासुर ने कहा: प्रभु आपकी आराधना में कीट-पक्षियों द्वारा होने वाले विघ्न से मुक्ति चाहिए। इसलिए मेरे शरीर से हमेशा तेज अग्नि निकलती रहे जिससे कोई पास न आए और मैं निर्विघ्न आपकी अराधना करता रहूं।
महादेव ने गजासुरो को उसका मनचाहा वरदान दे दिया। गजासुर फिर से शिवजी की साधना में लीन हो गया। हजारो साल के घोर तप से शिवजी फिर प्रकट हुए और कहा: तुम्हारे तप से प्रसन्न होकर मैंने मनचाहा वरदान दिया था। मैं फिर से प्रसन्न हूं बोलो अब क्या मांगते हो? गजासुर कुछ इच्छा लेकर तो तप कर नहीं रहा था। उसे तो शिव आराधना के सिवा और कोई कामपसंद नहीं था लेकिन प्रभु ने कहा कि वरदान मांगो तो वह सोचने लगा।

गजासुर ने कहा: वैसे तो मैंने कुछ इच्छा रखकर तप नहीं किया लेकिन आप कुछ देना चाहते हैं तो आप कैलाश छोड़कर मेरे उदर (पेट) में ही निवास करें। भोले भंडारी गजासुर के पेट में समा गए। माता पार्वती ने उन्हें खोजना शुरू किया लेकिन वह कहीं मिले ही नहीं। उन्होंने विष्णुजी का स्मरण कर शिवजी का पता लगाने को कहा

श्रीहरि ने कहा: बहन आप दुखी न हों। भोले भंडारी से कोई कुछ भी मांग ले, दे देते हैं। वरदान स्वरूप वह गजासुर के उदर में वास कर रहे हैं। श्रीहरि ने एक लीला की। उन्होंने नंदी बैल को नृत्य का प्रशिक्षण दिया और फिर उसे खूब सजाने के बाद गजासुर के सामने जाकर नाचने को कहा। श्रीहरि स्वयं एक ग्वाले के रूप में आए औऱ बांसुरी बजाने लगे। बांसुरी की धुन पर नंदी ने ऐसा सुंदर नृत्य किया कि गजासुर बहुत प्रसन्न हो गया।

उसने ग्वाला वेशधारी श्रीहरि से कहा: मैं तुम पर प्रसन्न हूं। इतने साल की साधना से मुझमें वैराग्य आ गया था। तुम दोनों ने मेरा मनोरंजन किया है। कोई वरदान मांग लो।

श्रीहरि ने कहा: आप तो परम शिवभक्त हैं। शिवजी की कृपा से ऐसी कोई चीज नहीं जो आप हमें न दे सकें। किंतु मांगते हुए संकोच होता है कि कहीं आप मना न कर दें। श्रीहरि की तारीफ से गजासुर स्वयं को ईश्वरतुल्य ही समझने लगा था।
उसने कहा: तुम मुझे साक्षात शिव समझ सकते हो। मेरे लिए संसार में कुछ भी असंभव नहीं। तुम्हें मनचाहा वरदान देने का वचन देता हूं।
श्रीहरि ने फिर कहा: आप अपने वचन से पीछेतो न हटेंगे। गजासुर ने धर्म को साक्षी रखकर हामी भरी तो श्रीहरि ने उससे शिवजी को अपने उदर से मुक्त करने का वरदान मांगा। गजासुर वचनबद्ध था। वह समझ गया कि उसके पेट में बसे शिवजी का रहस्य जानने वाला यह रहस्य यह कोई साधारण ग्वाला नहीं हैं,जरूर स्वयं भगवान विष्णु आए हैं। उसने शिवजी को मुक्त किया और शिवजी से एक आखिरी वरदान मांगा।
उसने कहा: प्रभु आपको उदर में लेने के पीछे किसी का अहित करने की मंशा नहीं थी।

मैं तो बस इतना चाहता था कि आपके साथ मुझे भी स्मरण किया जाए। शरीर से आपका त्याग करने के बाद जीवन का कोई मोल नहीं रहा। इसलिए प्रभु मुझे वरदान दीजिए कि मेरे शरीर का कोई अंश हमेशा आपके साथ पूजित हो। शिवजी ने उसे वह वरदान दे दिया।

श्रीहरि ने कहा: गजासुर तुम्हारी शिवभक्ति अद्भुत है। शिव आराधना में लगे रहो। समय आने पर तुम्हें ऐसा सम्मान मिलेगा जिसकी तुमने कल्पना भी नहीं की होगी। जब गणेशजी का शीश धड़ से अलग हुआ तो गजासुर के शीश को ही श्रीहरि काट लाए और गणपति के धड़ से जोड़कर जीवित किया था। इस तरह वह शिवजी के प्रिय पुत्र के रूप में प्रथम आराध्य हो गया।
यह भी जानें

Katha Shri Ganesh KathaShri Vinayak KathaGanpati KathaGanpati Bappa KathaGaneshotsav KathaGajanan KathaGanesh Chaturthi KathaGanesh And Hathi KathaElephant KathaShiv Katha

अगर आपको यह कथाएँ पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

Whatsapp Channelभक्ति-भारत वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें »
इस कथाएँ को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें Add To Favorites
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।

** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

पापमोचनी एकादशी व्रत कथा

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा: हे अर्जुन! चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचनी एकादशी के नाम से जाना जाता है।

शीतला अष्टमी(बसौड़ा) व्रत कथा

बसौड़ा व्रत कथा | शीतला माता धरती पर राजस्थान के डुंगरी गाँव में आईं और देखा कि इस गाँव में मेरा मंदिर नहीं है, और ना ही मेरी पूजा होती है..

अथ श्री बृहस्पतिवार व्रत कथा | बृहस्पतिदेव की कथा

भारतवर्ष में एक राजा राज्य करता था वह बड़ा प्रतापी और दानी था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्‌मणों...

भौम प्रदोष व्रत कथा

जो प्रदोष व्रत मंगलवार के दिन पड़ता है वह प्रदोष भौम प्रदोष व्रत या मंगल प्रदोष व्रत कहलाता है। एक नगर में एक वृद्धा रहती थी। उसका एक ही पुत्र था..

मंगलवार व्रत कथा

सर्वसुख, राजसम्मान तथा पुत्र-प्राप्ति के लिए मंगलवार व्रत रखना शुभ माना जाता है। पढ़े हनुमान जी से जुड़ी मंगलवार व्रत कथा...

आमलकी एकादशी व्रत कथा

श्री भगवान बोले: हे राजन्, फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम आमलकी एकादशी है। इस व्रत के करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं..

सोमवार व्रत कथा

किसी नगर में एक धनी व्यापारी रहता था। दूर-दूर तक उसका व्यापार फैला हुआ था। नगर के सभी लोग उस व्यापारी का सम्मान करते थे..

Hanuman Chalisa - Hanuman Chalisa
Ganesh Aarti Bhajan - Ganesh Aarti Bhajan
×
Bhakti Bharat APP