कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 2
इस प्रकार सत्यभामा भगवान श्रीकृष्ण के मुख से अपने पूर्वजन्म के पुण्य का प्रभाव सुनकर बहुत प्रसन्न हुई।
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कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 1
नैमिषारण्य तीर्थ में श्रीसूतजी ने अठ्ठासी हजार सनकादि ऋषियों से कहा: अब मैं आपको कार्तिक मास की कथा विस्तारपूर्वक सुनाता हूँ
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टेसू झेंजी विवाह की पौराणिक कथा
मान्यता के अनुसार, भीम के पुत्र घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक को महाभारत का युद्ध मे आते समय झेंजी से प्रेम हो गया। उन्होंने युद्ध से लौटकर झेंजी से विवाह करने का वचन दिया..
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हे कुंतीनंदन! आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पापांकुशा एकादशी है। आश्विन शुक्ल एकादशी के दिन इच्छित फल की प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए।
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आश्विन कृष्ण एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी है। यह एकादशी पापों को नष्ट करने वाली तथा पितरों को अधोगति से मुक्ति देने वाली होती है।
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पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार एक गरुड़ और एक मादा लोमड़ी नर्मदा नदी के पास एक जंगल में रहते थे।
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हनुमान गाथा के विस्तार पूर्वक चार चरणों मे - हनुमान जन्म, बाल हनुमान, श्री राम मिलन, लंका आगमन, सीता की खोज
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आश्विन संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा
आश्विन मास की संकष्टी चतुर्थी को श्रीकृष्ण तथा बाणासुर की इस कथा के अनुसार एक समय की बात है बाणासुर की कन्या उषा ने सुषुप्तावस्था में अनिरुद्ध का स्वप्न देखा..
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एक बार महाराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया। उस समय यज्ञ मंडप का निर्माण सुंदर तो था ही। श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी अनंत भगवान का व्रत किया जिसके प्रभाव से पांडव...
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पार्श्व / परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा
युधिष्ठिर ने कहा हे भगवान! आपने भाद्रपद कृष्ण एकादशी अर्थात अजा एकादशी का सविस्तार वर्णन सुनाया। अब आप कृपा करके मुझे भाद्रपद शुक्ल एकादशी का क्या नाम, इसकी विधि तथा इसका माहात्म्य कहिए।
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वीर तेजाजी लोकदेवता, कृषि कार्यो के उपकारक देवता, प्रणवीर, युद्धवीर, सत्यवीर, परमार्थी, वीर शिरोमणि थे।
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हाथी का शीश ही क्यों श्रीगणेश के लगा?
गज और असुर के संयोग से एक असुर जन्मा था, गजासुर। उसका मुख गज जैसा होने के कारण उसे गजासुर कहा जाने लगा। गजासुर शिवजी का बड़ा भक्त था..
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विदर्भ देश में उत्तंक नामक एक सदाचारी ब्राह्मण देव रहते थे। उनकी पत्नी बड़ी पतिव्रता थी, जिसका नाम सुशीला था। उन ब्राह्मण के एक पुत्र तथा एक पुत्री दो संतान थी।
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कथा के अनुसार मां पार्वती ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हिमालय पर गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया।
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