विनय पत्रिका: शिव स्तुति: पद 5 (Vinay Patrika: Shiv Stuti: Pad 5)
कस न दीनपर द्रवहु उमाबर। दारुन बिपति हरन करुनाकर ॥ १ ॥
बेद -पुरान कहत उदार हर। हमरि बेर कस भयेहु कृपिनतर ॥ २ ॥
कवनि भगति कीन्ही गुननिधि द्विज। होइ प्रसन्न दीन्हेहु सिव पद निज ॥ ३ ॥
जो गति अगम महामुनि गावहिं। तव पुर कीट पतंगहु पावहिं ॥ ४ ॥
देहु काम-रिपु ! राम -चरन-रति। तुलसिदास प्रभु ! हरहु भेद -मति ॥ ५ ॥
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