दीन-दयालु दिवाकर देवा ।
कर मुनि, मनुज, सुरासुर सेवा ॥ १ ॥
हिम-तम-करि केहरि करमाली ।
दहन दोष-दुख-दुरित-रुजाली ॥ २ ॥
कोक-कोकनद-लोक-प्रकासी ।
तेज -प्रताप-रूप-रस-रासी ॥ ३ ॥
सारथि-पंगु, पंगुदिब्य रथ-गामी ।
हरि-संकर -बिधि-मूरति स्वामी ॥ ४ ॥
बेद पुरान प्रगट जस जागै ।
तुलसी राम-भगति बर माँगै ॥ ५ ॥
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