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श्रीमद्‍भगवद्‍गीता: अर्जुनविषादयोग - श्लोक 37 (Shrimad Bhagwat Geeta: Arjun Visada Yog: Shlok 37)


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तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान्‌ ।
स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिनः स्याम माधव ॥
भावार्थ: अतएव हे माधव! अपने ही बान्धव धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारने के लिए हम योग्य नहीं हैं क्योंकि अपने ही कुटुम्ब को मारकर हम कैसे सुखी होंगे?
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