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श्रीमद्‍भगवद्‍गीता: अर्जुनविषादयोग - श्लोक 36 (Shrimad Bhagwat Geeta: Arjun Visada Yog: Shlok 36)


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निहत्य धार्तराष्ट्रान्न का प्रीतिः स्याज्जनार्दन ।
पापमेवाश्रयेदस्मान्‌ हत्वैतानाततायिनः ॥
भावार्थ: हे जनार्दन! धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हमें क्या प्रसन्नता होगी? इन आततायियों को मारकर तो हमें पाप ही लगेगा।
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