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श्रीमद्‍भगवद्‍गीता: अर्जुनविषादयोग - श्लोक 27 (Shrimad Bhagwat Geeta: Arjun Visada Yog: Shlok 27)


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श्वशुरान्सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि ।
तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान् ॥
भावार्थ : इस प्रकार उन सब बन्धुबान्धवों को खड़े देखकर कुन्ती पुत्र अर्जुन का मन करुणा से भर गया और विषादयुक्त होकर उसने यह कहा।
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