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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 53 (Shri Ramcharitmanas Sundar Kand Pad 53)


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चौपाई:
तुरत नाइ लछिमन पद माथा ।
चले दूत बरनत गुन गाथा ॥
कहत राम जसु लंकाँ आए ।
रावन चरन सीस तिन्ह नाए ॥1॥
बिहसि दसानन पूँछी बाता ।
कहसि न सुक आपनि कुसलाता ॥
पुनि कहु खबरि बिभीषन केरी ।
जाहि मृत्यु आई अति नेरी ॥2॥

करत राज लंका सठ त्यागी ।
होइहि जब कर कीट अभागी ॥
पुनि कहु भालु कीस कटकाई ।
कठिन काल प्रेरित चलि आई ॥3॥

जिन्ह के जीवन कर रखवारा ।
भयउ मृदुल चित सिंधु बिचारा ॥
कहु तपसिन्ह कै बात बहोरी ।
जिन्ह के हृदयँ त्रास अति मोरी ॥4॥

दोहा:
की भइ भेंट कि फिरि गए
श्रवन सुजसु सुनि मोर ।
कहसि न रिपु दल तेज बल
बहुत चकित चित तोर ॥53॥
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लक्ष्मणजी के चरणों में मस्तक नवाकर, श्री रामजी के गुणों की कथा वर्णन करते हुए दूत तुरंत ही चल दिए। श्री रामजी का यश कहते हुए वे लंका में आए और उन्होंने रावण के चरणों में सिर नवाए॥1॥

दशमुख रावण ने हँसकर बात पूछी- अरे शुक! अपनी कुशल क्यों नहीं कहता? फिर उस विभीषण का समाचार सुना, मृत्यु जिसके अत्यंत निकट आ गई है॥2॥

मूर्ख ने राज्य करते हुए लंका को त्याग दिया। अभागा अब जौ का कीड़ा (घुन) बनेगा (जौ के साथ जैसे घुन भी पिस जाता है, वैसे ही नर वानरों के साथ वह भी मारा जाएगा), फिर भालु और वानरों की सेना का हाल कह, जो कठिन काल की प्रेरणा से यहाँ चली आई है॥3॥

और जिनके जीवन का रक्षक कोमल चित्त वाला बेचारा समुद्र बन गया है (अर्थात्‌) उनके और राक्षसों के बीच में यदि समुद्र न होता तो अब तक राक्षस उन्हें मारकर खा गए होते। फिर उन तपस्वियों की बात बता, जिनके हृदय में मेरा बड़ा डर है॥4॥

उनसे तेरी भेंट हुई या वे कानों से मेरा सुयश सुनकर ही लौट गए? शत्रु सेना का तेज और बल बताता क्यों नहीं? तेरा चित्त बहुत ही चकित (भौंचक्का सा) हो रहा है॥53॥

Granth Ramcharitmanas GranthSundar Kand Granth

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गोस्वामी तुलसीदास कृत विनयपत्रिका ब्रज भाषा में रचित है। विनय पत्रिका में विनय के पद है। विनयपत्रिका का एक नाम राम विनयावली भी है।

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