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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 50 (Shri Ramcharitmanas Sundar Kand Pad 50)


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चौपाई:
अस प्रभु छाड़ि भजहिं जे आना ।
ते नर पसु बिनु पूँछ बिषाना ॥
निज जन जानि ताहि अपनावा ।
प्रभु सुभाव कपि कुल मन भावा ॥1॥
पुनि सर्बग्य सर्ब उर बासी ।
सर्बरूप सब रहित उदासी ॥
बोले बचन नीति प्रतिपालक ।
कारन मनुज दनुज कुल घालक ॥2॥

सुनु कपीस लंकापति बीरा ।
केहि बिधि तरिअ जलधि गंभीरा ॥
संकुल मकर उरग झष जाती ।
अति अगाध दुस्तर सब भाँती ॥3॥

कह लंकेस सुनहु रघुनायक ।
कोटि सिंधु सोषक तव सायक ॥
जद्यपि तदपि नीति असि गाई ।
बिनय करिअ सागर सन जाई ॥4॥

दोहा:
प्रभु तुम्हार कुलगुर जलधि
कहिहि उपाय बिचारि ।
बिनु प्रयास सागर तरिहि
सकल भालु कपि धारि ॥50॥
यह भी जानें
हिन्दी भावार्थ

ऐसे परम कृपालु प्रभु को छोड़कर जो मनुष्य दूसरे को भजते हैं, वे बिना सींग-पूँछ के पशु हैं। अपना सेवक जानकर विभीषण को श्री रामजी ने अपना लिया। प्रभु का स्वभाव वानरकुल के मन को (बहुत) भाया॥1॥

फिर सब कुछ जानने वाले, सबके हृदय में बसने वाले, सर्वरूप (सब रूपों में प्रकट), सबसे रहित, उदासीन, कारण से (भक्तों पर कृपा करने के लिए) मनुष्य बने हुए तथा राक्षसों के कुल का नाश करने वाले श्री रामजी नीति की रक्षा करने वाले वचन बोले-॥2॥

हे वीर वानरराज सुग्रीव और लंकापति विभीषण! सुनो, इस गहरे समुद्र को किस प्रकार पार किया जाए? अनेक जाति के मगर, साँप और मछलियों से भरा हुआ यह अत्यंत अथाह समुद्र पार करने में सब प्रकार से कठिन है॥3॥

विभीषणजी ने कहा- हे रघुनाथजी! सुनिए, यद्यपि आपका एक बाण ही करोड़ों समुद्रों को सोखने वाला है (सोख सकता है), तथापि नीति ऐसी कही गई है (उचित यह होगा) कि (पहले) जाकर समुद्र से प्रार्थना की जाए॥4॥

हे प्रभु! समुद्र आपके कुल में बड़े (पूर्वज) हैं, वे विचारकर उपाय बतला देंगे। तब रीछ और वानरों की सारी सेना बिना ही परिश्रम के समुद्र के पार उतर जाएगी॥50॥

Granth Ramcharitmanas GranthSundar Kand Granth

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विनय पत्रिका

गोस्वामी तुलसीदास कृत विनयपत्रिका ब्रज भाषा में रचित है। विनय पत्रिका में विनय के पद है। विनयपत्रिका का एक नाम राम विनयावली भी है।

श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 41

बुध पुरान श्रुति संमत बानी । कही बिभीषन नीति बखानी ॥ सुनत दसानन उठा रिसाई ।..

श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 44

कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू । आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू ॥ सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं ।..

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