Download Bhakti Bharat APP
Hanuman Chalisa - Hanuman ChalisaDownload APP Now - Download APP NowAchyutam Keshavam - Achyutam KeshavamFollow Bhakti Bharat WhatsApp Channel - Follow Bhakti Bharat WhatsApp Channel

श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 49 (Shri Ramcharitmanas Sundar Kand Pad 49)


Add To Favorites Change Font Size
चौपाई:
सुनु लंकेस सकल गुन तोरें ।
तातें तुम्ह अतिसय प्रिय मोरें ॥
राम बचन सुनि बानर जूथा ।
सकल कहहिं जय कृपा बरूथा ॥1॥
सुनत बिभीषनु प्रभु कै बानी ।
नहिं अघात श्रवनामृत जानी ॥
पद अंबुज गहि बारहिं बारा ।
हृदयँ समात न प्रेमु अपारा ॥2॥

सुनहु देव सचराचर स्वामी ।
प्रनतपाल उर अंतरजामी ॥
उर कछु प्रथम बासना रही ।
प्रभु पद प्रीति सरित सो बही ॥3॥

अब कृपाल निज भगति पावनी ।
देहु सदा सिव मन भावनी ॥
एवमस्तु कहि प्रभु रनधीरा ।
मागा तुरत सिंधु कर नीरा ॥4॥

जदपि सखा तव इच्छा नाहीं ।
मोर दरसु अमोघ जग माहीं ॥
अस कहि राम तिलक तेहि सारा ।
सुमन बृष्टि नभ भई अपारा ॥5॥

दोहा:
रावन क्रोध अनल
निज स्वास समीर प्रचंड ।
जरत बिभीषनु राखेउ
दीन्हेहु राजु अखंड ॥49 (क)॥

जो संपति सिव रावनहि
दीन्हि दिएँ दस माथ ।
सोइ संपदा बिभीषनहि
सकुचि दीन्ह रघुनाथ ॥49 (ख)॥
यह भी जानें
हिन्दी भावार्थ

हे लंकापति! सुनो, तुम्हारे अंदर उपर्युक्त सब गुण हैं। इससे तुम मुझे अत्यंत ही प्रिय हो। श्री रामजी के वचन सुनकर सब वानरों के समूह कहने लगे- कृपा के समूह श्री रामजी की जय हो॥1॥

प्रभु की वाणी सुनते हैं और उसे कानों के लिए अमृत जानकर विभीषणजी अघाते नहीं हैं। वे बार-बार श्री रामजी के चरण कमलों को पकड़ते हैं अपार प्रेम है, हृदय में समाता नहीं है॥2॥

(विभीषणजी ने कहा-) हे देव! हे चराचर जगत्‌ के स्वामी! हे शरणागत के रक्षक! हे सबके हृदय के भीतर की जानने वाले! सुनिए, मेरे हृदय में पहले कुछ वासना थी। वह प्रभु के चरणों की प्रीति रूपी नदी में बह गई॥3॥

अब तो हे कृपालु! शिवजी के मन को सदैव प्रिय लगने वाली अपनी पवित्र भक्ति मुझे दीजिए। 'एवमस्तु' (ऐसा ही हो) कहकर रणधीर प्रभु श्री रामजी ने तुरंत ही समुद्र का जल माँगा॥4॥

(और कहा-) हे सखा! यद्यपि तुम्हारी इच्छा नहीं है, पर जगत्‌ में मेरा दर्शन अमोघ है (वह निष्फल नहीं जाता)। ऐसा कहकर श्री रामजी ने उनको राजतिलक कर दिया। आकाश से पुष्पों की अपार वृष्टि हुई॥5॥

श्री रामजी ने रावण की क्रोध रूपी अग्नि में, जो अपनी (विभीषण की) श्वास (वचन) रूपी पवन से प्रचंड हो रही थी, जलते हुए विभीषण को बचा लिया और उसे अखंड राज्य दिया॥49 (क)॥

शिवजी ने जो संपत्ति रावण को दसों सिरों की बलि देने पर दी थी, वही संपत्ति श्री रघुनाथजी ने विभीषण को बहुत सकुचते हुए दी॥49 (ख)॥

Granth Ramcharitmanas GranthSundar Kand Granth

अगर आपको यह ग्रंथ पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

Whatsapp Channelभक्ति-भारत वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें »
इस ग्रंथ को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें Add To Favorites
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।

** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

विनय पत्रिका

गोस्वामी तुलसीदास कृत विनयपत्रिका ब्रज भाषा में रचित है। विनय पत्रिका में विनय के पद है। विनयपत्रिका का एक नाम राम विनयावली भी है।

श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 41

बुध पुरान श्रुति संमत बानी । कही बिभीषन नीति बखानी ॥ सुनत दसानन उठा रिसाई ।..

श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 44

कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू । आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू ॥ सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं ।..

Hanuman Chalisa - Hanuman Chalisa
Ram Bhajan - Ram Bhajan
×
Bhakti Bharat APP