॥ चौपाई ॥
सुदिन सोधि कल कंकन छौरे।
मंगल मोद बिनोद न थोरे ॥
नित नव सुखु सुर देखि सिहाहीं ।
अवध जन्म जाचहिं बिधि पाहीं ॥1॥
बिस्वामित्रु चलन नित चहहीं ।
राम सप्रेम बिनय बस रहहीं ॥
दिन दिन सयगुन भूपति भाऊ ।
देखि सराह महामुनिराऊ ॥2॥
मागत बिदा राउ अनुरागे ।
सुतन्ह समेत ठाढ़ भे आगे ॥
नाथ सकल संपदा तुम्हारी ।
मैं सेवकु समेत सुत नारी ॥3॥
करब सदा लरिकनः पर छोहू ।
दरसन देत रहब मुनि मोहू ॥
अस कहि राउ सहित सुत रानी ।
परेउ चरन मुख आव न बानी ॥4॥
दीन्ह असीस बिप्र बहु भाँती ।
चले न प्रीति रीति कहि जाती ॥
रामु सप्रेम संग सब भाई ।
आयसु पाइ फिरे पहुँचाई ॥5॥
॥ दोहा ॥
राम रूपु भूपति भगति ब्याहु उछाहु अनंदु।
जात सराहत मनहिं मन मुदित गाधिकुलचंदु ॥360 ॥
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