॥ चौपाई ॥
हरि सन मागौं सुंदरताई।
होइहि जात गहरु अति भाई ॥
मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ।
एहि अवसर सहाय सोइ होऊ ॥1॥बहुबिधि बिनय कीन्हि तेहि काला ।
प्रगटेउ प्रभु कौतुकी कृपाला
प्रभु बिलोकि मुनि नयन जुड़ाने ।
होइहि काजु हिएँ हरषाने ॥2॥
अति आरति कहि कथा सुनाई ।
करहु कृपा करि होहु सहाई।।
आपन रूप देहु प्रभु मोही ।
आन भाँति नहिं पावौं ओही ॥3॥
जेहि बिधि नाथ होइ हित मोरा ।
करहु सो बेगि दास मैं तोरा ॥
निज माया बल देखि बिसाला ।
हियँ हँसि बोले दीनदयाला ॥4॥
॥ दोहा ॥
जेहि बिधि होइहि परम हित नारद सुनहु तुम्हार ।
सोइ हम करब न आन कछु बचन न मृषा हमार ॥
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