हे भगीरथ नंदिनी, तुम्हारी जय हो, जय हो। तुम मुनियों के समूह रूपी चकोरों के लिए चंद्रिका रूप हो। मनुष्य, नाग और देवता तुम्हारी वंदना करते हैं। हे जन्हू की पुत्री, तुम्हारी जय हो।
तुम भगवान विष्णु के चरण कमल से उत्पन्न हुई हो, शिवजी के मस्तक पर शोभा पाती हो। स्वर्ग, भूमि और पाताल इन तीनों मार्गों से तीन धाराओं में होकर बहती ही। पुण्यों की राशि और पापों को धोने वाली हो।
तुम अगाध निर्मल जल धारण किए हो, वह जल शीतल है और तीनों तापों को हरने वाला है। तुम सुंदर भँवर और अति चंचल तरंगों की माला धारण किए हो।
नगर वासियों ने पूजा के समय उपहार चढ़ाये उनसे चंद्रमा के समान तुम्हारी धवल धारा शोभित हो रही है। यह धारा संसार के जन्म मरण रूप भार का नाश करने वाली तथा भक्ति रूपी कल्पवृक्ष की रक्षा के लिए थाल्हा रूप है।
तुम अपने तीर पर रहने वाले पक्षी, जलचर, पशु, पतंग, कीट और जटाधारी तपस्वी आदि सबका समान भाव से पालन करती हो।
हे मोह रूपी महिषासुर को मारने के लिए कालिका रूप गंगाजी, मुझ तुलसीदास को ऐसी बुद्धि दो जिससे वह श्री रघुनाथ जी का स्मरण करते हुए तुम्हारे तीर पर विचरा करे।
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Anil Bisht
Sushmita Mazumdar
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