श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 15
कहेउ राम बियोग तव सीता । मो कहुँ सकल भए बिपरीता ॥ नव तरु किसलय मनहुँ कृसानू ।..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 14
हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी । सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी ॥ बूड़त बिरह जलधि हनुमाना ।..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 13
तब देखी मुद्रिका मनोहर । राम नाम अंकित अति सुंदर ॥ चकित चितव मुदरी पहिचानी ।..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 12
रिजटा सन बोली कर जोरी । मातु बिपति संगिनि तैं मोरी ॥ तजौं देह करु बेगि उपाई ।..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 11
त्रिजटा नाम राच्छसी एका । राम चरन रति निपुन बिबेका ॥ सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना ।..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 10
सीता तैं मम कृत अपमाना । कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना ॥ नाहिं त सपदि मानु मम बानी ।..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: नवाँ पद
तरु पल्लव महुँ रहा लुकाई । करइ बिचार करौं का भाई ॥ तेहि अवसर रावनु तहँ आवा ।..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: अष्टम पद
जानतहूँ अस स्वामि बिसारी । फिरहिं ते काहे न होहिं दुखारी ॥ एहि बिधि कहत राम गुन ग्रामा ।..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: सप्तम पद
सुनहु पवनसुत रहनि हमारी । जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी ॥ तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा ।..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: षष्ठम पद
लंका निसिचर निकर निवासा । इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा ॥ मन महुँ तरक करै कपि लागा ।..
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