श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 25
जदपि कहि कपि अति हित बानी । भगति बिबेक बिरति नय सानी ॥ बोला बिहसि महा अभिमानी ।..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 24
जदपि कहि कपि अति हित बानी । भगति बिबेक बिरति नय सानी ॥ बोला बिहसि महा अभिमानी ।..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 23
राम चरन पंकज उर धरहू । लंका अचल राज तुम्ह करहू ॥ रिषि पुलिस्त जसु बिमल मंयका ।..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 22
जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई । सहसबाहु सन परी लराई ॥ समर बालि सन करि जसु पावा ।..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 21
कह लंकेस कवन तैं कीसा । केहिं के बल घालेहि बन खीसा ॥ की धौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही ।..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 20
ब्रह्मबान कपि कहुँ तेहि मारा । परतिहुँ बार कटकु संघारा ॥ तेहि देखा कपि मुरुछित भयऊ ।..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 19
सुनि सुत बध लंकेस रिसाना । पठएसि मेघनाद बलवाना ॥ मारसि जनि सुत बांधेसु ताही ।..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 18
चलेउ नाइ सिरु पैठेउ बागा । फल खाएसि तरु तोरैं लागा ॥ रहे तहाँ बहु भट रखवारे ।..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 17
मन संतोष सुनत कपि बानी । भगति प्रताप तेज बल सानी ॥ आसिष दीन्हि रामप्रिय जाना ।..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 16
जौं रघुबीर होति सुधि पाई । करते नहिं बिलंबु रघुराई ॥ रामबान रबि उएँ जानकी ।..
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