श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 47
तब लगि हृदयँ बसत खल नाना । लोभ मोह मच्छर मद माना ॥ जब लगि उर न बसत रघुनाथा ।..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 46
अस कहि करत दंडवत देखा । तुरत उठे प्रभु हरष बिसेषा ॥ दीन बचन सुनि प्रभु मन भावा ।..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 45
सादर तेहि आगें करि बानर । चले जहाँ रघुपति करुनाकर ॥ दूरिहि ते देखे द्वौ भ्राता ।..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 43
एहि बिधि करत सप्रेम बिचारा । आयउ सपदि सिंधु एहिं पारा ॥ कपिन्ह बिभीषनु आवत देखा ।..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 42
अस कहि चला बिभीषनु जबहीं । आयूहीन भए सब तबहीं ॥ साधु अवग्या तुरत भवानी ।..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 40
माल्यवंत अति सचिव सयाना । तासु बचन सुनि अति सुख माना ॥ तात अनुज तव नीति बिभूषन ।..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 39
तात राम नहिं नर भूपाला । भुवनेस्वर कालहु कर काला ॥ ब्रह्म अनामय अज भगवंता ।..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 38
सोइ रावन कहुँ बनि सहाई । अस्तुति करहिं सुनाइ सुनाई ॥ अवसर जानि बिभीषनु आवा ।..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 37
श्रवन सुनी सठ ता करि बानी । बिहसा जगत बिदित अभिमानी ॥ सभय सुभाउ नारि कर साचा ।..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 36
उहाँ निसाचर रहहिं ससंका । जब ते जारि गयउ कपि लंका ॥ निज निज गृहँ सब करहिं बिचारा ।..
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