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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 60
नाथ नील नल कपि द्वौ भाई । लरिकाई रिषि आसिष पाई ॥ तिन्ह के परस किएँ गिरि भारे..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 59
सभय सिंधु गहि पद प्रभु केरे । छमहु नाथ सब अवगुन मेरे ॥ गगन समीर अनल जल धरनी..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 58
लछिमन बान सरासन आनू । सोषौं बारिधि बिसिख कृसानू ॥ सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीती ..
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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 57
सुनत सभय मन मुख मुसुकाई । कहत दसानन सबहि सुनाई ॥ भूमि परा कर गहत अकासा..
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