सुहागन महिलाएं अपने सास-ससुर एवं पति की लम्बी उम्र के लिए वट पूर्णिमा व्रत को रखतीं हैं। महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारतीय राज्यों में महिलाएं इसे ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को मानतीं हैं।
जबकि उत्तर भारत जैसे पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं उड़ीसा राज्य में वट पूर्णिमा 15 दिन पहिले ही ज्येष्ठ कृष्णा अमावस्या को वट सावित्री व्रत के रूप में मनाया जाता है।
भारत में हिंदुओं के बीच दो प्रकार के पंचांग अधिक प्रसिद्ध हैं, अधिकतर त्यौहार इन्हीं अमानता एवं पूर्णिमानता पांचंगों पर आधारित हैं। वैसे तो दोनों ही कैलेंडर में व्रत और त्योहार एक ही दिन पड़ते हैं, परंतु कुछ त्यौहार में यह दिनों का भी अंतर हो जाता है।
उत्तर भारत के पूर्णिमानता पंचांग के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है।जबकि दक्षिण के अमानता पंचांग के अनुसार इसे ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को मनाते है, तथा वट पूर्णिमा व्रत भी कहते है।
दोनों ही पंचागों के अनुसार व्रत एवं उसके पीछे की पौराणिक कथा समान ही है।
वट सावित्री व्रत कैसे रखें
सुहागिन महिलाओं के बीच प्रसिद्ध करवा चौथ व्रत के ही अनुरूप वट सावित्री व्रत का महत्व है। कई स्त्रियाँ इस अनुष्ठान में तीन दिन का उपवास रखती हैं। तीन दिन तक व्रत रखना कभी-कभी संभव नहीं हो पाता है, अतः पहले दिन रात को खाना खा लिया जाता है, दूसरे दिन फलाहार किया जा सकता है, तथा तीसरे दिन पूर्ण व्रत का पालन किया जाता है।
संबंधित अन्य नाम | वट पूर्णिमा व्रत |
शुरुआत तिथि | ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा |
कारण | पति की लंबी उम्र हेतु। |
उत्सव विधि | व्रत, दान, पूजा। |
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