परम पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान श्री स्वामीनारायण का जन्म चैत्र 9 को विक्रम संवत 1837, 3 अप्रैल, 1781 ई. में राम नवमी के दिन हुआ था। स्वामीनारायण जयंती चैत्र माह में आने वाली नवरात्रि के नौवें दिन मनाया जाता है। उन्होंने लाखों लोगों को प्रबुद्ध किया और उनकी अमर शिक्षा दुनिया भर में कई लोगों को प्रेरित करती है। उन्हें सनातन धर्म का संदेश फैलाने के लिए भी जाना जाता है।
स्वामीनारायण जयंती का महत्व:
स्वामीनारायण के शिष्य हर साल इस शुभ दिन को बहुत उत्साह के साथ मनाते हैं। कहा जाता है कि भगवान स्वामीनारायण की माता भक्ति माता ने उन्हें घनश्याम का नाम दिया था, लेकिन उनके पिता उन्हें धर्म देव कहते थे।
स्वामीनारायण जयंती के अनुष्ठान:
स्वामीनारायण जयंती के दिन, भक्त सुबह जल्दी उठते हैं, स्नान करते हैं और भगवान की पूजा करते हैं। भगवान की मूर्ति को एक सजाए गए पालने पर रखा जाता है और उसे फूल, फल आदि चढ़ाए जाते हैं। भक्त निर्जला उपवास करते हैं, अर्थात वे दिन भर बिना पानी पिए उपवास रखते हैं। हालांकि, उन्हें अपने उपवास के समय फल खाने की अनुमति है।
चूंकि भगवान का जन्म रात 10:10 बजे हुआ था, इस समय सभी मंदिरों में स्वामीनारायण के बाल रूप की आरती की जाती है। भक्त इस दिन भगवान स्वामीनारायण को उनके आध्यात्मिक ग्रंथों का पाठ करके प्रसाद चढ़ाते हैं। भगवान स्वामीनारायण द्वारा प्रचारित आध्यात्मिकता से संबंधित विषयों पर भक्तों की विस्तृत चर्चा होती है।
स्वामीनारायण के जीवन में घटी घटनाओं को सुनकर और शास्त्रों को पढ़कर और कीर्तन गाकर भक्त पूरे दिन मनाते हैं।
शुरुआत तिथि | चैत्र शुक्ल नवमी |
कारण | भगवान श्री राम का अवतरण दिवस। |
उत्सव विधि | व्रत, प्रार्थना, भजन, कीर्तन, हवन। |
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