दक्षिण भारत में भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय को मुरुगन या अयप्पा के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर नामक राक्षस का वध किया था इसलिए इस दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से जीवन में उच्च योग के लक्षण प्राप्त होते हैं। स्कंद षष्ठी के दौरान, भक्त छह दिनों का उपवास रखते हैं जो कार्तिक या पिरथमाई के चंद्र महीने के पहले दिन से शुरू होता है और छठे दिन समाप्त होता है जिसे सूरसम्हारम दिवस के रूप में जाना जाता है। स्कंद षष्ठी का दिन चंद्र मास के आधार पर तय किया जाता है और यह त्योहार कार्तिक महीने के छठे दिन पड़ता है। यह त्योहार तमिल कैलेंडर के अइप्पासी या कार्तिकई महीने में आता है।
स्कंद षष्ठी और सूरसम्हारम कैसे मनाएं?
❀ सूरसम्हारम स्कंद षष्ठी के दौरान छह दिवसीय त्योहार का आखिरी और सबसे महत्वपूर्ण दिन है। ऐसा माना जाता है कि सूरसम्हारम के दिन भगवान मुरुगन ने राक्षस सुरपद्मन को युद्ध में हराया था। इसीलिए दुनिया को बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देने के लिए हर साल सूरसम्हारम का त्योहार मनाया जाता है।
❀ यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि, जिस दिन षष्ठी तिथि और पंचमी तिथि एक साथ आती है, उस दिन सूरसम्हारम व्रत किया जाता है। इसीलिए अधिकांश मंदिर पंचमी तिथि को स्कंद षष्ठी मनाते हैं, जब षष्ठी तिथि पंचमी तिथि पर सूर्यास्त से पहले शुरू होती है।
❀ तिरुचेंदुर मुरुगन मंदिर में स्कंद षष्ठी उत्सव सबसे लोकप्रिय है। कार्तिक माह की पहली तिथि से प्रारंभ होकर छह दिवसीय उत्सव का समापन सूरसम्हारम के दिन होता है। सूरसम्हारम के अगले दिन थिरु कल्याणम मनाया जाता है।
सूरसम्हारम उत्सव के दौरान क्या होता है?
स्कंद षष्ठी उत्सव के अंतिम दिन सूरसम्हारम से पहले कई समारोह होते हैं। विशेष पूजाएँ आयोजित की जाती हैं और मुरुगन के देवता का अभिषेकम के अनुष्ठान में अभिषेक किया जाता है। भक्त मंदिर जाके देवता के दर्शन करते हैं।
यह त्यौहार मुख्य रूप से कहाँ मनाया जाता है?
स्कंद षष्ठी, जिसे कंडा षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है, भगवान मुरुगन को समर्पित एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है। स्कंद षष्ठी उत्सव मुख्य रूप से तमिल हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है। सूरसम्हारम उत्सव को सुरनपोरु भी कहा जाता है।
संबंधित अन्य नाम | सूरसम्हारम, सुरनपोरु, स्कंद षष्ठी |
शुरुआत तिथि | कार्तिक चन्द्र माह के प्रथम दिवस |
कारण | भगवान मुरुगन |
उत्सव विधि | मंदिर में प्रार्थना, व्रत, घर में पूजा |
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