सावन तथा भादों मास में मनाई जाने वाली तीन मुख्य तीज हरियाली तीज, कजरी तीज, हरतालिका तीज महिलाओं के बीच अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। भाद्रपद महीने में रक्षाबंधन के 3 दिन बाद तथा श्री कृष्ण जन्माष्टमी से 5 दिन पहले कृष्णा तृतीया को कजरी तीज त्यौहार मनाया जाता है। इस कजरी तीज त्यौहार को बड़ी तीज, सातुड़ी तीज, बूढ़ी तीज एवं कजली तीज के नाम से भी जाना जाता है। यह इस मायने में एक कठिन त्योहार है कि व्रत रखने वाला दिन भर के उपवास के दौरान पानी भी नहीं पीता है।
कजरी तीज का महत्व
कजरी शब्द की उत्पत्ति लोक परंपरा में हुई है, जो बताती है कि एक महिला अपने पति से थोड़े समय के अलगाव का दर्द कैसे महसूस करती है। यह त्योहार मानसून से भी जुड़ा हुआ है। महिलाएं अनुष्ठान करने के लिए अपने पैतृक घर जाती हैं और चंद्रमा की पूजा करती हैं। वे नीम के पेड़ की भी पूजा करते हैं। शिव और पार्वती से प्रार्थना करने का महत्व इस तथ्य में निहित है कि वे एक सुखी विवाहित जोड़े का प्रतिनिधित्व करते हैं।
इस दिन प्रत्येक महिला झूला झूलतीं हैं तथा अपनी सहेलियों के साथ एक जगह समूह में भजन, कीर्तन एवं झूला के गीतों के साथ नाच गाने करती हैं। विवाहित महिलाएँ अपने पति के लिए एवं कुआरी लड़कियाँ अच्छे पति के लिए व्रत रखती है। त्योहार के दिन महिलाएं अपनी हथेलियों पर मेहंदी लगाती हैं और नए कपड़े पहनती हैं। यह त्यौहार ज्यादातर राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है।
संबंधित अन्य नाम | बड़ी तीज, सातुड़ी तीज, कजली तीज, बूढ़ी तीज, भाद्रपद कृष्णा तृतीया |
शुरुआत तिथि | भाद्रपद कृष्णा तृतीया |
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