Updated: Sep 27, 2024 17:42 PM |
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Holashtak Date: Friday, 7 March 2025
फाल्गुन मास की शुक्ला अष्टमी तिथि से लेकर पूर्णिमा तक के समय को होलाष्टक कहा जाता है। आमतौर पर होलाष्टक 8 दिनों का होता है, लेकिन कई बार 9 दिनों का हो सकता। इन आठ दिनों में किसी भी शुभ काम को करना पूरी तरह वर्जित माना जाता है। होलाष्टक समय अवधि में मांगलिक कार्य निषेद माने गये हैं। होलाष्टक अवधि में किसी भी शुभ काम जैसे नामकरण संस्कार, जनेऊ संस्कार, गृह प्रवेश, विवाह संस्कार आदि नहीं करना चाहिए।
तप करने के लिए होलाष्टक का समय बहुत ही शुभ माना जाता है। होलाष्टक प्रारंभ होते ही होलिका दहन वाले स्थान की गोबर, गंगाजल आदि से लिपाई की जाती है।साथ ही वहाँ पर होलिका का डंडा लगा दिया जाता है जिनमें एक को होलिका और दूसरे को प्रह्लाद माना जाता है। होलाष्टक का समापन होलिका दहन के साथ होता है। रंग और गुलाल के साथ इस पर्व का समापन हो जाता है।
संबंधित अन्य नाम | होलिकाष्टक |
शुरुआत तिथि | फाल्गुन शुक्ला अष्टमी |
The period from Shukla Ashtami Tithi of Phalgun month to Purnima is called Holashtak. Usually Holashtak is of 8 days, but sometimes it can be of 9 days. Doing any auspicious work in these eight days is considered completely prohibited.
होलाष्टक 2024 कब है?
होलाष्टक रविवार, 17 मार्च 2024 से प्रारम्भ होकर रविवार, 24 मार्च 2024 तक रहेगा।
प्रचलित कथाएं
होलाष्टक की कई कथाएं प्रचलित हैं, उनमें से कामदेव तथा प्रहलाद वाली कथा सबसे ज्यादा प्रचलित है..
1) कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार फाल्गुन शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि के दिन कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग कर दी थी। इसके कारण वे रुष्ट हो गए और उन्होंने कामदेव को भस्म कर दिया था। इसके उपरांत कामदेव की पत्नी देवी रति ने शिवजी की आराधना की। इसके उपरांत आठ दिनों बाद शिवजी ने उनकी प्रार्थना सुनी और कामदेव को पुनर्जीवन का वरदान दिया।
2) कथा
भक्त प्रहलाद का जन्म राक्षस कुल में हुआ था, लेकिन वो भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। उसके पिता हिरण्यकश्यप को ये बात बिल्कुल पसंद नहीं थी। इस कारण उसने फाल्गुन मास की अष्टमी तिथि से लेकर पूर्णिमा तक प्रहलाद को काफी यातनाएं दी थीं। जब उसकी यातनाओं का भी प्रह्लाद पर असर नहीं हुआ तो उसने पूर्णिमा के दिन अपनी बहन होलिका को प्रहलाद को लेकर अग्निमें बैठने को कहा।
होलिका को अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था। जब होलिका उसे आग में लेकर बैठी तो भी प्रहलाद नहीं जला, लेकिन होलिका जलकर राख हो गई। इस कारण होली से पहले के आठ दिनों को अशुभ माना जाता है और पूर्णिमा के दिन होलिका को जलाया जाता है, जो कि बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। इसके उपरांत ही होली का पर्व मनाया जाता है।
होलाष्टक के वैज्ञानिक तर्क
होलाष्टक के समय को अशुभ बताने के पीछे बहुत सारे धार्मिक कारण दिए जाते रहे हों, लेकिन इसका मुख्य कारण आपकी सेहत से जुड़ा हुआ है। होली प्रारंभ से पहले वाले सप्ताह में मौसम में काफी बदलाव होना शुरू हो जाता है। इस बदलाव के बीच कभी सर्दी और कभी गर्मी का आना-जाना लगा रहता है। मौसम के इस बदलाव के कारण शरीर की इम्यूनिटी कमजोर पड़ जाती है। अतः व्यक्ति के रोगों की चपेट में आने की आशंका भी बढ़ जाती है।
किसी भी शुभ कार्य में काम का बोझ अत्यधिक बढ़ जाता है, अगर ऐसे में व्यक्ति किसी बीमारी की चपेट में आ गया तो वो उन कामों को ठीक से न करने की संभावना बढ़ जाएगी। इस कारण से मौसम बदलाव के इन आठ दिनों को अशुभ बताकर किसी भी शुभ कार्य को वर्जित कर दिया गया है, ताकि लोग स्वस्थ रहें और आने वाले त्योहार को स्वस्थ एवं आनन्दित रहकर माना सकें। होली के बाद मौसम बदल चुका होता है और गर्मी का असर तेजी से बढ़ने लगता है।
संबंधित जानकारियाँ
आगे के त्यौहार(2025)
7 March 202514 March 2025
शुरुआत तिथि
फाल्गुन शुक्ला अष्टमी
समाप्ति तिथि
फाल्गुन शुक्ला पूर्णिमा
पिछले त्यौहार
End : 24 March 2024, Begins : 17 March 2024, End : 7 March 2023, Begins : 27 February 2023
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होलाष्टक 2025 तिथियाँ
Festival | Date |
| 7 March 2025 |
| 14 March 2025 |