अहिल्या उत्सव 18वीं शताब्दी की रानी अहिल्याबाई होल्कर के सम्मान में भारतीय राज्य मध्य प्रदेश में मनाया जाने वाला एक त्योहार है, जिन्हें साहस और शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
क्यों मनाया जाता है अहिल्या उत्सव:
वीरांगना रानी अहिल्या बाई 'दार्शनिक रानी' के नाम से प्रसिद्ध हैं, 13 अगस्त 1795 को सत्तर वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया था। उनकी विरासत अभी भी जीवित है और उनके द्वारा किए गए विभिन्न मंदिर, धर्मशालाएं और सार्वजनिक कार्य महान योद्धा रानी की गवाही के रूप में खड़े हैं।
उन्होंने अपना ध्यान विभिन्न परोपकारी गतिविधियों की ओर भी लगाया, जिनमें उत्तर में मंदिरों, घाटों, कुओं, तालाबों और विश्राम गृहों के निर्माण से लेकर दक्षिण में तीर्थस्थलों तक शामिल थे। उनका सबसे उल्लेखनीय योगदान 1780 में प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर का नवीनीकरण और मरम्मत था।
कैसे मनाया जाता है अहिल्या उत्सव?
इंदौर की वीरांगना रानी अहिल्या बाई की पुण्य तिथि के अवसर पर हर वर्ष अहिल्या उत्सव मनाया जाता है। इस दिन सुबह राजवाड़ा पर देवी अहिल्या बाई की मूर्ति मूर्तिपर माल्यार्पण की जाती है। इसके बाद इंद्रेश्वर मंदिर में भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है और शाम को प्रतीकात्मक पालकी यात्रा भी निकाली जाती है। देवी अहिल्योत्सव समिति के कार्यकारी अध्यक्ष द्वारा देवी अहिल्याबाई की जयंती मनाई जाती है।
मई महीने में देवी अहिल्याबाई की जन्म दिवस के अवसर पर मध्य प्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग द्वारा इंदौर में कार्यक्रम आयोजित किया जाता है और इसमें संगीत, नृत्य और कविता पाठ जैसे विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम शामिल होते हैं। यह लोगों द्वारा अहिल्याबाई और उनकी विरासत को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है।
अहिल्या उत्सव एक लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण है और पूरे भारत से पर्यटकों को आकर्षित करता है। यह लोगों के लिए एक साथ आने और एक उल्लेखनीय महिला के जीवन और उपलब्धियों का जश्न मनाने का समय होता है।
संबंधित अन्य नाम | Ahilya Utsav, Devi Ahilya Jayanti Parv |
कारण | रानी अहिल्याबाई होल्कर |
उत्सव विधि | कीर्तन, झांकी,भंडारे |
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