Shri Hinglaj Bhawani Mandir inaugurated with the blesses of his holiness Shri Jagadguru Shankaracharya Swami Swaroopanand Saraswati Ji Maharaj Shankaracharya of Dwarakapeeth Dham in the Gujrat. Thousands of devotees visit every year and people strongly believe that fulfills the wish of every devotee who visits Her.
Hinglaj Mata, also known as Hinglaj Devi, Hingula Devi and Nani Mandir, is a Hindu temple in Hinglaj, a town on the Makran coast in the Lasbela district of Balochistan, Pakistan, and is the middle of the Hingol National Park. Nani Mandir is one of the Shakti Peethas of the goddess Sati. Nani Mandir is a form of Durga or Devi located in a mountain cavern on the banks of the Hingol River.
भारतवर्ष अनादिकाल से ही शक्ति का अनन्य उपासक रहा है। शक्ति निकाल दी जाये तो उसका कोई अस्तित्व नही. उसे अपरिहार्य तत्व बतलाया गया है। शक्ति तीन प्रकार से प्राप्ति की जाती है। 1. प्रभाव से 2. उत्साह से 3. मन्त्र से इन सभी श्क्तियों की केन्द्रभूत जत्ता को वेदों में \"अत्याक्रता प्रकृति\" पुराणों में योगेश्वरी, योगनिन्द्रा महाश्क्ति, पराश्क्ति आदि नाम से अकहा गया हैं।
आज भारतवर्ष में सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक दिवालियापन बढता चला जा रहा है लोगों के अन्दर ईश्र्या, द्वेष, घ्रणा, कपट, दंभ, दर्प, क्रोध आदि आसुरी सम्पदाओं की उत्तरोत्तर व्रद्धि हो रही है। सर्वत्र नैतिकता का अभाव वदम सा दिखाई दे रहा है प्रसससन मे अन्याय, अत्याचार एवं भ्रष्टाचार का बोलबाला हो रहा है। सभी सन्त्रस्त है, इसी कमजोरी का लाभ उठाकर विदेसी आतंकवाद और आनतरिक विघटनाकारी श्क्तियां निरन्तर प्रबल होती जा रही है। भौतिक रूप से विकसित देश यहाँ की सम्रद्धि को कुण्ठित करनें मे जरा भी कसर नही छोड रहे है। ऐसी स्थिति में हमें पुनः आध्यात्मिक ऊर्जा का सहारा लेना पडेगा जिससे हम पुनः इन आसुरी सम्पदाओं पर इपिवजय प्राप्त कर सके।
हमारी धर्मिक तथा ऐतिहासिक परम्परा \"पीठ\" श्ब्द से उन तीर्थे के आधारभूत स्थलों का बोध होता है। जहाँ तत्तत देवताओ का निवास स्थान माना जाता है। शक्तिपीठ देवीपीठ एवं सिद्धपीठ वे तीर्थ हैं जहाँ शक्तिपीठ भगवती का अनिष्ठान है, पुराणों में कथा आती हैं कि एक बार दक्ष प्रजापति ने यज्ञ करना प्रारम्भ किया, उसमें उसने भगवान श्ंकर से अकारण वैर रखने के कारण उन्हे ईर्षावश आमंत्रित नही किया। दक्ष कन्या सती को जब अपने पिता के इस दुराग्रहपूर्ण कृत्य का पता चला तो वे यज्ञ मण्डप में पहूॅची तथा उन्होने अपने पिता से पूछा कि इस पर दक्ष अत्यन्त क्रु होकर बोला कि \"तू मेरे नेत्रो के सामने से हट जा, \"इस पर सती ने यह कहकर कि \"मैं तेरे द्धारा उत्पन्न शरीर का ही परित्याग रही हॅू। उन्होने तत्क्षण भद्रकाली का रूप धारण कर लिया और दक्ष से बोली\" मैं चाहूॅ तो अभी तेरा वध कर सकती हूॅ। परन्तु ऐसा करने से हमें पितहत्या का दोष लगेगा। \"ऐसा कहकर वे छायासती को निर्मित करके स्वयं अपने को अन्तार्हत कर बैठी छायासती ने ही अपने विद्रूप अग्निकुण्ड में समर्पित करके यज्ञशाला में निर्जीव शरीर छोड दिया वह निर्जीव शरीर क्या था मानों भौतिक दैविक और आध्यात्मिक शरीर को कन्धों पर उठाकर भगवान शंकर ताण्ड़व नृत्य करने लगे । वह शक्ति पिण्ड कहीं भुमण्डल का सर्वथा परित्याग करके अन्तरिक्ष में न चला जाय अतः इसी उछदेश्य से भगवान विष्णु ने संसार की सक्षा के लिए सुदर्शन चक्र से उसके विभिन्न अंगो को काटकर गिराना प्रारम्भ किया, इस प्रकार अविभक्त भारत में उसके इक्यावन टुकडे़ यत्र-तत्र गिरे, जहाँ सती का उत्तमांगा ब्रहारन्ध्र गिरा वह स्थान हिंगलाज पीठ कहलाया। यह स्तान में हिन्दूकूश पर्वत श्रंृखला के मध्य अवस्थित है, जहाँ सनातन धर्मियो का जाना संभव नही, मुसलमान लोग वहाँ भगवती को श्नानीश् कहा करते हैं तथा वहाँ की यात्रा को श्नानी की हजश्ए उस स्थान को पुजारी ब्रोहि जाति का मुसलमान होता है।
भारत की दुर्दशा को देखकर भगवती ने एक दिन ब्रहा मुहुर्त में हमे यह ध्यान में प्रेरणा कि भारत का आधिदैविक, आधिभौतिक तथा आध्यात्मिक ऊर्जा की अभिवृद्धि के लिये यह आवश्यक है कि यहाँ मेरे हिंगलाज पीठ की स्थापना की जाये।
वस्तुतः हिंगलाज माता और कोई अप्राकृत शक्ति नही बल्कि श्री विधा राजराजेश्वरी त्रिपुरा सुन्दरी ही हैं जिनकी उपासना भगवान श्री राम ने रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए की थी। भगवान परशुराम ने धनुर्यज्ञ में श्री राम द्वारा पराभूत होने के लिए उन्ही की उपासना से शक्ति प्राप्त की थी इन्द्र ने दानवो की पराजय के लिए भगवान दŸाात्रेय से इनकी उपासना की दीक्षा ली थी नाथ सम्प्रदाय के गुरूमत्स्येन्द्र नाथ मच्छिनदर नाथ एवं गुरू गोरखनाथ ने भी उनकी उपासना की थी आल्हा ऊदल की तो ये विशष थी।
भारत के सभी प्रदेशों में इनकी उपासना विभिन्न रूपसें में प्रचलित हैं, राजस्थान की आवड़देवी, करणी देवी, गुजरात की खोडियार माता, आशापुरा, अम्बाजी, असम की कामाख्य, तंमिलनाडु की कन्याकुमारी कान्ची की कामाक्षी, प्रयाग की ललिता, विन्घ्याचज की अष्टभुजा, कांगडा की ज्वालामुखी, वाराणसी की विशालाक्षी, गया की मंगला गौरी, बंगाल की सुन्दरी, नेपाल की गुहयेश्वरी और मालवा की कलिका-इन रूपों में आधाशक्ति हिंगलाज-भवानी ही सुशोभित हो रही है।
भारत के विभिन्न कुलो की कुलदेवी तथा प्रत्यंक ग्राम के ग्राम देवता के रूप् के हिगलाज भवानी जनसमाज की नैतिक। तथा आध्यात्मिक समस्याओ के समाधान के लिए ये आश्रय जानी जाती है, सही कारण हैहक हमने राष्ट को जोडने के लिये उनको अपना आश्रय बनया है।
\"माँ कालरूपणि। महाकालि, भण्डासुरदैत्सहन्त्रि। महाकालि। महासरस्वति। राजराजेश्वरी। हिंगुलामाँ। असुरविनाशनि देविं दिगदिंगत भदी हुकार करके भारत के आन्तरिक और बाहरी शत्रुओं का संहार कर दें।\"
\"माँ दुर्गे। आप हमारी देह में योगबल से प्रवेश करें, हम यंत्र और अशुभ-संहारक प्राण बनें।\"
जगदधात्रि। अपनी अनन्त शक्तियों के साथ भारत के दिग् गिन्तों पर अवतरित होकर असुर आततायियों आतंकवाद से इस देश और दशवासियों की रक्षा करें। रक्षा करें।\" \"पाहिमाम\"
27 जून 2001 में महामाया की कृपा से मधुविहार दिल्ली में हिंगलाज भवानी के मन्दिर का उदघाटन हुआ और शंकराचार्य आश्रम बना यह चमत्कार देवी से ही सम्भव हुआ, दिल्ली में यही मन्दिर एकमात्र है जहाँ लाखो भक्तो की मनोकामना दर्शन मात्र से ही पूरी हो जाती है, रोगी शीघ्र ठीक हो जाता है।
Only Mata Hinglaj Mandir in Delhi, original mata mandir situated in Pakistan.
Dakshin Mukhi Shri Hanuman Ji murti in Hinglaj Mandir.
Front view of the temple after walking upstairs towards Swami Dayanand Marg near Hasanpur Depot.
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