चंद्र मास पर आधारित हिंदू कैलेंडर में हर महीने में दो चतुर्थी होती हैं, एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में। शास्त्रों के अनुसार अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी जो पूर्णिमा के बाद आती है उसे संकष्टी चतुर्थी कहते हैं।
हिंदू शास्त्रों और पुराणों के अनुसार ये दोनों चतुर्थी तिथियां भगवान गणेश को समर्पित हैं। जो लोग भगवान गणेश को अपना अधिष्ठाता देवता मानते हैं, वे आकर इस दिन विधि-विधान से व्रत रखकर उनकी पूजा करते हैं। भगवान गणेश को हिंदू धर्म में अग्रेपुज्य आदिदेव कहा जाता है।
संकष्टी चतुर्थी और विनायक चतुर्थी का व्रत क्यों करें?
हिंदू शास्त्रों के अनुसार हर महीने
विनायक चतुर्थी और
संकष्टी चतुर्थी को विघ्नहर्ता श्री गणेश की पूजा और व्रत करने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। विनायक चतुर्थी व्रत उन लोगों द्वारा किया जाता है जो रिद्धि-सिद्धि (धन, विद्या, स्वामित्व आदि) की इच्छा रखते हैं, जबकि संकष्टी चतुर्थी जीवन में बाधाओं के शमन (अंत) के उद्देश्य से मनाई जाती है। मान्यता के अनुसार, इन दोनों तिथियों पर भक्त रात में चंद्रमा के उदय होने के बाद ही दूध और पानी से चढ़ाकर और फूल, फल, मिठाई आदि चढ़ाकर अपना उपवास तोड़ते हैं।
इस प्रकार विनायक चतुर्थी और संकष्टी चतुर्थी का व्रत हर महीने में किया जाता है, लेकिन गणेश चतुर्थी भादों महीने की चतुर्थी तिथि को ही मनाई जाती है। माना जाता है कि इसी दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था यानि गणेश चतुर्थी उनके जन्मदिन का पर्व है। यह त्यौहार पश्चिमी भारत, विशेषकर महाराष्ट्र में उल्लेखनीय तरीके से मनाया जाता है।
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