वाक् देवी हे कलामयी
हे सुबुद्धि सुकामिनी
ज्ञान रूपे सुधि अनूपे
हे सरस्वती नामिनी !
वाक् देवी हे कलामयी
हे सुबुद्धि सुकामिनी
बसू अधर'मे भाव'घर'मे शुद्ध ह्रदय सँवारि दे
ज्ञान गंगा भरि दिय'
माँ विद्या भरि भरि शारदे
करू इजोरे सभ डगरि मे
घेरि रहलै जामिनी !
वाक् देवी हे कलामयी
हे सुबुद्धि सुकामिनी
पाणि वीणा पाणि पुस्तक
हंस वाहिनी वागीशे
राग लय सुर निर्झरी बहबू
हे माँ हमरो दिशे
माय देखियौ द्वंद्व एहिमन
करू शमन हरि-वामिनी !
वाक् देवी हे कलामयी
हे सुबुद्धि सुकामिनी
छल प्रपञ्चसँ दूर रहि रहि
किछु करी जगले सदा
जे देलौं माँ ज्ञान सुधि बुधि
बाँटि दी ओ सर्वदा
फूटय नै शिव के अधर सँ
दोख कुबुद्धि के दामिनी !
वाक् देवी हे कलामयी
हे सुबुद्धि सुकामिनी
Singer: Madhvi Madhukar Jha
Lyrics : Shiv Kumar Jha'Tillu'
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