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अभय मुद्रा का आध्यात्मिक महत्व (Spiritual Significance of Abhaya Mudra)

अभय मुद्रा हिंदू और बौद्ध धर्म में उपयोग की जाने वाली एक मुद्रा (हाथ का इशारा) है। इसे अभय मुद्रा या फियर नॉट मुद्रा के नाम से भी जाना जाता है। इशारा दाहिने हाथ को ऊपर उठाकर किया जाता है, जिसमें हथेली बाहर की ओर होती है और उंगलियां फैली हुई होती हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह मुद्रा सुरक्षा, निर्भयता और शांति का प्रतिनिधित्व करती है।
अभय मुद्रा का अर्थ
अभय मुद्रा की व्याख्या अक्सर भय पर विजय पाने या निडर होने के हाथ के इशारे के रूप में की जाती है। हालाँकि, "डर" को धर्म के मार्ग पर चलकर और नेक रास्ते पर चलकर ही जीतना चाहिए।

अभय मुद्रा हमेशा दाहिने हाथ से बनाई जाती है। यह अज्ञानता से ऊपर उठकर धर्म के मार्ग पर चलने का प्रतीक है। बायां हाथ या तो नीचे की ओर लटका हुआ है (खड़े होने पर) या वरद मुद्रा या ध्यान मुद्रा जैसी पूरक मुद्रा बना रहा है।

हिंदू देवताओं की मूर्तियों में अभय मुद्रा की झलक
❀ अभय मुद्रा भगवान विष्णु से भी जुड़ी है, जिन्हें अक्सर मुद्रा बनाते हुए चित्रित किया गया है। अभय मुद्रा एक शक्तिशाली प्रतीक है जिसका उपयोग शांति और कल्याण को बढ़ावा देने के लिए किया जा सकता है। यह एक अनुस्मारक है कि हम सभी जुड़े हुए हैं और हमारे पास भय और नकारात्मकता पर काबू पाने की शक्ति है।

❀ भारतीय धर्मों में, अभय मुद्रा दैवीय सुरक्षा का भी प्रतीक है। अभया (वह बिना किसी डर के) हिंदू देवी शक्ति (स्त्री ऊर्जा) के अवतारों में से एक है, जिसे वैकल्पिक रूप से महामाया या चंडिका कहा जाता है। अभय मुद्रा जैन कल्पना और शिव (नटराज) और पार्वती जैसे हिंदू देवताओं के चित्रण में भी एक सामान्य रूप है।

❀ अभय मुद्रा अमोघसिद्धि (कर्म के देवता) - बौद्ध पंथ में 5वें ध्यानी बुद्ध - का हाथ का प्रतीक भी है।

अंत में, अभय मुद्रा कई बुद्ध चित्रणों में पाई जाती है, विशेष रूप से लीला बुद्ध (बुद्ध का चलना या लहराते हुए चित्रण) और चित्रों में, जो वर्णन करते हैं कि कैसे गौतम बुद्ध ने इस भाव से एक क्रोधित हाथी को शांत किया।

Spiritual Significance of Abhaya Mudra in English

Abhaya Mudra is a mudra (hand gesture) used in Hinduism and Buddhism.
यह भी जानें

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नर्मदा परिक्रमा यात्रा

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भद्रा विचार क्या है

जब भी किसी शुभ और शुभ कार्य का शुभ मुहूर्त देखा जाता है तो उसमें भद्रा का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है और कोई भी शुभ कार्य भद्रा के समय को छोड़कर दूसरे मुहूर्त में किया जाता है।

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