प्रयाग के संगम तट पर एक माह रहकर लोग कल्पवास करते हैं। यह परम्परा सदियों से चली आ रही है। ’कल्पवास‘ एक ऐसा व्रत है जो प्रयाग आदि तीर्थों के तट पर किया जाता है। कल्पवास का अर्थ है संगम के तट पर निवास कर वेदाध्ययन और ध्यान करना। प्रयागराज संगम तट पर सामान्यतः पौष माह के ग्यारहवें दिन से माघ महीने के 12 वें दिन तक किया जाता है। हालांकि कुछ लोग माघ पूर्णिमा तक कल्पवास करते हैं।
कल्पवास का अपना एक अलग विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो कल्पवासी लगातार बारह वर्ष तक अनवरत कल्पवास करते हैं, वह मोक्ष के भागी होते हैं कर्मकाण्ड अथवा पूजा में हर कार्य संकल्प के साथ शुरू होता है और संकल्प में “श्रीश्वेतवाराहकल्पे” का सम्बोधन किया जाता है।
कल्पवास का इतिहास
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार प्राचीन काल में तीर्थराज प्रयाग में घना जंगल हुआ करता था और यहां भारद्वाज ऋषि का आश्रम था। यहां ब्रह्माजी ने यज्ञ किया था, इसके बाद से ऋषियों की इस तपोभूमि पर हर साल
माघ मेले में और कुंभ में यहां आकर साधुओं और गृहस्थों की ओर से कल्पवास करने की परंपरा चल रही है।
वैसे तो साधुओं और ऋषियों के लिए हमेशा ही कल्पवास रहता है, लेकिन गृहस्थ कम समय में अपना कल्याण कर पाएं। इसके लिए यहां कल्पवास का विधान किया गया। यहां अल्पकाल के लिए गृहस्थों को शिक्षा और दीक्षा भी दी जाती थी।
पद्म पुराण में कल्पवास का वर्णन है, इसमें कहा गया है कि संगम तट पर वास करने वाले को सदाचारी, शांतचित्त और जितेंद्रिय होना चाहिए। कल्पवास के दौरान तीन कार्य तय किए गए हैं। ये कार्य हैं तप, होम (हवन) और दान। आजकल तमाम तीर्थ पुरोहित झोपड़ी की व्यवस्था करा देते हैं।
कल्पवास के नियम
❀ कल्पवास के कुछ नियम तय किए गए हैं। जो भी गृहस्थ कल्पवास का संकल्प लेकर आता है, उसे यहां ऋषियों या खुद की बनाई पर्णकुटी (झोपड़ी) में रहना पड़ता है। कल्पवास में एक बार ही भोजन किया जाता है। धैर्य, अहिंसा का पालन करते हुए, भक्ति में संलग्न होना पड़ता है।
❀ यह बहुत ही कठिन व्रत है। इस व्रत में सूर्योदय से पूर्व स्नान, मात्र एक बार भोजन, पुनः मध्यान्ह तथा सायंकाल तीन बार स्नान का विधान है परन्तु अधिकांश लोग केवल सुबह, शाम स्नान करते हैं। कल्पवास के व्रत को एक माह में पूर्ण करते हैं।
प्रयाग में कल्पवास का महत्व
❀ मत्स्य पुराण में प्रयाग में कल्पवास का महत्व बताया गया है। इसमें कहा गया है कि जो कल्पवास का संकल्प लेता है, वह अगले जन्म में राजा बनता है। लेकिन जो मोक्ष की अभिलाषा लेकर यहां आता है वह जीवन मरण के चक्कर से मुक्त हो जाता है।
❀ धार्मिक ग्रंथों में यह भी कहा गया है कि प्रयाग में माघ में स्नान के दौरान तीन बार स्नान से पृथ्वी पर दस हजार अश्वमेध यज्ञ के फल के बराबर पुण्य फल प्राप्त होता है। यह भी कहा गया है कि माघ मास में प्रयागराज के संगम तट पर ब्रह्मा, विष्णु, महेश, रूद्र आदि आते हैं।
❀ कल्पवास की महत्ताओं को रामायण में भी दर्शाया गया है। प्रयागराज के भारद्वाज मुनि आश्रम में आए प्रभु श्रीराम और माता सीता संतों के मुख से इसकी महिमा सुनते हैं। रामचरित मानस में इसका बड़ा ही सुंदर चित्रण है।
❀ एक वक्त भोजन, भजन, कीर्तन, सूर्य अर्घ्य, स्नानादि धार्मिक कृत्यों के समावेश से शरीर का शोधन अर्थात् शरीर को आध्यात्मिक चेतना से जोड़ने की प्रक्रिया ही कल्पवास की वैज्ञानिक प्रक्रिया है। कुछ लोग पौष पूर्णिमा से और कुछ लोग मकर संक्रान्ति से इसे प्रारम्भ करते हैं।
❀ कल्पवास के लिए इस दौरान प्रयागराज में संगम तट पर आध्यात्मिक नगर बसता है, जहां तमाम धार्मिक गतिविधियां होती हैं। पूरे माघ महीने तक यहां देश भर के लोगों के निवासकर आध्यात्मिक कार्यों में संलिप्त रहने के चलते इसे माघ मेला प्रयागराज के नाम से भी जानते हैं। कल्पवास मेले का पहला बड़ा स्नान पौष पूर्णिमा को होता है।