जंगम जोगी,
जंगम शब्द का अर्थ एक यात्रा करने वाला जोगी है जो एक स्थान से दूसरे स्थान तक यात्रा करता है और दान द्वारा अपना जीवन यापन करता है। शैव संप्रदाय के ये जोगी भगवान शिव की भक्ति के लिए जाने जाते हैं। जो भगवान शिव की कहानी सुनाती है, जिसमें शिव के विवाह से लेकर उनके
अमरनाथ जाने तक की पूरी कहानी को गीतों के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं।
जंगम जोगी की जीवन शैली
❀ जंगम जोगी प्रारंभिक बारह वर्षों से तैयार हो जाते हैं, उन्हें जागरूक, तेज, सतेज, प्रणवन-जंगम बनकर संन्यास जीवन का अभ्यास करना होता है।
❀ एक स्थान पर तीन दिन से अधिक स्थायी रूप से नहीं रहते हैं।
❀ एक ही स्थान पर केवल सात अपरिचित घरों में भीख माँगें, वहाँ से जो मिले उसी में दिन व्यतीत करें, संयम का जीवन व्यतीत करते हैं।
❀ वर्षा के चार मास ऐसे साधु एक ही स्थान पर रहते हैं।
❀ लेकिन स्वाध्याय, सत्संग, व्रतोपासना और निदिध्यासन में लगे रहना चाहिए, कुछ सन्यासियों को मठ चलाने में कोई दिलचस्पी नहीं होती, वे हमेशा गतिशील रहते हैं।
❀ इसके बाद आरंभिक बारह वर्षों के बाद या जितने वर्षों तक गुरु ने गतिशील रहने का आदेश दिया है, उसके बाद उन्हें मठ चलाने का प्रभारी माना जाता है और वे स्थावर सन्यासी कहलाते हैं।
जंगम जोगी की पहचान
जंगम जोगी की पहचान बेहद आसान है।
❀ वे केसरिया वस्त्र, सिर पर दशनामी पगड़ी और तांबे-पीतल का कलश जिस पर मोर पंखों का गुच्छा लगा होता है और हाथ में एक विशेष आकार की घंटी जिसे टल्ली कहते हैं, धारण करती हैं।
❀ वे अन्य साधुओं की तरह सीधे भीख नहीं माँगते, बल्कि घरों और दुकानों के सामने खड़े होकर टल्ली बजाते हुए शिव के अनोखे भजन गाने लगते हैं।
❀ सबसे खास बात यह है कि ये जोगी कभी भी हाथ फैलाकर दान नहीं मांगते हैं। जब भी कोई उसे दान देता है तो वह हाथ में पकड़ी हुई टल्ली को उलट कर दान स्वीकार कर लेता है।
❀ लोककथाओं के अनुसार ये जोगी टल्ली में दान लेते हैं क्योंकि उन्हें भगवान शिव ने आदेश दिया था कि वे कभी भी माया को अपने हाथ में न लें, इसलिए वे टल्ली में दान लेते हैं।
जंगम जोगी उत्पति की पुराणिक कथा
जंगम साधुओं की उत्पत्ति के सम्बन्ध में मुख्यतः दो प्रकार की कथाएँ प्रचलित हैं। पहली कहानी के अनुसार, कहा जाता है कि जब देवी पार्वती ने भगवान गणेश की रचना की, तो उन्होंने भगवान शिव से एक देवता बनाने के लिए कहा। ऐसे में भगवान शिव ने उनकी जंघा काट दी और उससे गिरा रक्त कुश नामक मूर्ति पर गिरा और वह निर्जीव मूर्ति जीवित हो गई। इसी कुश की मूर्ति से जंगम ऋषियों की उत्पत्ति हुई।
दूसरी कथा के अनुसार, यह माना जाता है कि शिव-पार्वती के विवाह के दौरान, भगवान शिव ने पहले विष्णु और फिर ब्रह्माजी को विवाह करने के लिए दक्षिणा देना चाहा, लेकिन दोनों ने दक्षिणा लेने से इनकार कर दिया। हिंदू मान्यताओं के अनुसार दक्षिणा ग्रहण किए बिना कोई भी कर्मकांड पूरा नहीं माना जाता है। यही कारण था कि भगवान शिव ने अपनी जंघा काटकर चरनशील ऋषियों की रचना की। इसके बाद इन साधुओं ने दक्षिणा ली और शिव-पार्वती विवाह की रस्में पूरी कराईं और कई गीत गाए।
भारत में जंगम जोगी के विभिन्न नाम
जंगम जोगी मुख्य रूप से हरियाणा से हैं, कहा जाता है कि ये लोग हरियाणा से उत्पन्न हुए हैं और देश भर में अलग-अलग नामों से जाने जाते हैं।
महाराष्ट्र में मध्य प्रदेश में जंगम और कर्नाटक में जंगम अय्या (आचार्य) स्वामी के नाम से जाना जाता है। तमिलनाडु के कई क्षेत्रों में जंगम वीरशिव पंडारम, उत्तर भारत में जंगम बाबा और आंध्र प्रदेश में जंगम देवा, नेपाल में जंगम गुरु के रूप में जाना जाता है।
इन साधुओं से जुड़ी एक खास बात यह है कि कोई भी यूं ही जंगम साधु नहीं बन सकता। कहा जाता है कि प्रत्येक पीढ़ी में प्रत्येक परिवार का एक सदस्य साधु बनता है। इस तरह यह समुदाय बढ़ रहा है।