भारत के मंदिरों की कहानियां, उनकी अनोखी संरचनाएं और मंदिरों से जुड़े अद्भुत अनुभव आपको एक रोमांचक यात्रा पर ले जाएंगे। देवभूमि उत्तराखंड में आपको कई अद्भुत कहानियां और चमत्कारी मंदिर देखने को मिलेंगे।
खूबसूरत पहाड़ों के बीच स्थित इन मंदिरों में एक ऐसा मंदिर भी है जो पूरे साल बंद रहता है। यह मंदिर साल में सिर्फ एक बार रक्षाबंधन के दिन ही 12 घंटे के लिए खोला जाता है।रक्षाबंधन के इस विशेष दिन पर मंदिर खुलते ही भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है जो यहां पूजा-अर्चना करते हैं और भगवान बंशी नारायण का आशीर्वाद लेते हैं।
बंशी नारायण मंदिर के कपाट कब खुलते हैं?
चमोली स्थित बंशी नारायण मंदिर के दरवाजे केवल रक्षाबंधन के दिन ही भक्तों के लिए खोले जाते हैं। इस दिन मंदिर तब तक खुला रहता है जब तक सूर्य की रोशनी रहती है। सूर्य अस्त होते ही मंदिर के दरवाजे फिर से बंद कर दिए जाते हैं।
दूर-दूर से श्रद्धालु सुबह से ही मंदिर के दर्शन के लिए यहां पहुंचने लगते हैं और बेसब्री से कपाट खुलने का इंतजार करते हैं।
बंशी नारायण मंदिर से जुड़ी कहानी
यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु अपने वामन अवतार से मुक्त होने के बाद सबसे पहले इसी स्थान पर आये थे। तब देव ऋषि नारद ने यहां भगवान नारायण की पूजा की थी। इसलिए मान्यता है कि केवल एक दिन के लिए मंदिर के दरवाजे भगवान के दर्शन के लिए खोले जाते हैं।
रक्षाबंधन पर ही क्यों खुलते हैं मंदिर?
रक्षाबंधन के दिन इस मंदिर के खुलने की कहानी राजा बलि और भगवान विष्णु से जुड़ी है। कथा के अनुसार राजा बलि ने भगवान विष्णु से अपना द्वारपाल बनने का अनुरोध किया था, जिसे भगवान ने स्वीकार कर लिया और वे राजा बलि के साथ पाताल लोक चले गये। जब देवी लक्ष्मी ने कई दिनों तक भगवान विष्णु को कहीं नहीं पाया तो नारद जी के सुझाव पर उन्होंने राजा बलि से श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन रक्षा सूत्र बांधकर भगवान विष्णु को मुक्त करने का अनुरोध किया। इसके बाद राजा बलि ने इसी स्थान पर भगवान विष्णु को देवी लक्ष्मी से पुनः मिलाया।
इस मंदिर के आसपास दुर्लभ प्रजाति के फूल और पेड़ भी देखे जा सकते हैं और यहां का दृश्य मंत्रमुग्ध कर देने वाला होता है।अगर आपको यह ब्लॉग पसंद है, तो कृपया
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