भारत को स्वतंत्रता दिलाने में सभी का योगदान सम्माननीय है, इस योगदान में क्या बड़ा, क्या छोटा सभी ने जिस भी तरह से अपना योगदान निर्धारित किया वह अपने में एक मिसाल बन गया।
भारत में मंदिरों की ऐतिहासिक भूमिका है। प्राचीन काल से, मंदिरों ने न केवल पूजा के स्थान के रूप में बल्कि शिक्षा और व्यक्तियों के समग्र विकास के रूप में भी खुद को प्रतिबिंबित किया है। इन प्राचीन मंदिरों के आसपास अनेक नगर, सत्ता के स्थान, व्यापारिक केंद्र विकसित हुए। इन सभी सुधारों का उद्देश्य भारतीय लोगों को एक सामान्य उद्देश्य के लिए एकजुट करना था - विदेशी शासन के खिलाफ एक आम और एकजुट राजनीतिक चेतना विकसित करना। राजनीतिक मामलों पर चर्चा करने के लिए लोग धार्मिक स्थलों पर एकत्रित हुए।
लोकमान्य तिलक ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए हिंदुओं को संगठित करने के लिए गणेश चतुर्थी और शिव जयंती त्योहारों का आयोजन किया।
सनातन परंपरा के मुख्य केंद्र मंदिर, इस अभूतपूर्व घटना का साक्षी बनाने से अपने को कैसे रोक पाते? आइए जानते हैं किस-किस मंदिर का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्या-क्या योगदान रहा है।
श्री बाबा औघड़नाथ शिव मंदिर - Shri Baba Augharnath Shiv Mandir
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परतन्त्र काल में भारतीय सेना को काली पल्टन कहा जाता था। यह मन्दिर काली पल्टन क्षेत्र में स्थित होने से काली पल्टन मन्दिर के नाम से भी विख्यात है।
भारत के प्रथम स्वातन्त्रय संग्राम (1857) की भूमिका में इस देव-स्थान का प्रमुख स्थान रहा है। सुरक्षा एवं गोपनीयता के लिए उपयुक्त शान्त वातावरण के कारण अग्रेजों ने यहाँ सेना का प्रशिषण केन्द्र स्थापित किया था।
मन्दिर के प्रांगण में स्थित कुएँ पर सेना के जवान पानी पीने के अभ्यस्त थे। 1856 में बंदूकों के नये कारतूसो का आगमन भी स्वतंत्रता के प्रथम आन्दोलन का प्रधान कारण बना। इस कारतूसो का प्रयोग करने से पहले मुख से खोला जाता था, जिसमें गाय की चर्बी लगी रहती थी जिसकी वजह से मन्दिर के तत्कालीन पुजारी ने सेना के जवानों को पानी पिलाने से मना कर दिया। अतः निर्धारित 31 मई से पूर्व ही उत्तेजित सेना के जवानों ने 10 मई 1857 को अंगेजों के विरूद्ध क्रान्ति का बिगुल बजा दिया।
सारसबाग गणपती मंदिर - Sarasbaug Ganesh Temple
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पार्वती मंदिर से थोड़ी दूर होने के कारण, यह मंदिर 18वीं और 19वीं शताब्दी में निजाम और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ मराठों द्वारा सैन्य रणनीति चर्चा व क्रियान्वयन के लिए भी इस्तेमाल किया गया। पेशवा, उनके कमांडर तथा सलाहकार मुद्दे और योजनाओं पर चर्चा करने केलिए अफ्रीकी मूल निवासियों द्वारा संचालित गोपनीयता ढंग से नाव से झील में जाया करते थे। नाव चलाने के लिए गैर-मूल निवासियों को इसलिए चुनते थे क्योंकि वह स्थानीय मराठी भाषा को न समझ सकें।
भगवान वाल्मीकि मंदिर - Bhagwan Valmiki Mandir
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महात्मा गांधी ने 1 अप्रैल 1946 से 1947 के प्रारंभ तक अपने दिल्ली प्रवास के दौरान यहाँ 214 दिन बिताए थे।
देशभक्ति गीत:
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