ऊँचे, पर्वत, गुफा न्यारी,
जहाँ मां, भवन बना बैठी ॥
दर्शन, करती है... जय हो ॥
दुनिया सारी,
जहाँ मां, ज्योत जगा बैठी ॥
ऊँचे, पर्वत, गुफा न्यारी...
तेरे, देखे रंग न्यारे,
मां तू, लाखों पापी तारे ॥
ओ संगतें, बोलें... जय हो ॥
जय जयकारे,
सिंह पर, आसन लगा बैठी ॥
ऊँचे, पर्वत, गुफा न्यारी...
झूले, लाल मैया का झंडा,
बहती, चरणों में गंगा।।
ओ माथे, तिलक... जय हो ॥
लगाया चंदा,
शीश पर, मुकुट सजा बैठी ॥
ऊँचे, पर्वत, गुफा न्यारी...
चूड़ा, लाल रंग का पहना,
देखी, अजब है तेरी माया ॥
ओ आसन... जय हो ॥
गुफा में लगाया,
सोहणी मां, खेल रचा बैठी ॥
ऊँचे, पर्वत, गुफा न्यारी...
मेहंदी, लाल रंग की लगाई,
सिर पर, चुनरी लाल सजाई ॥
ओ संगत... जय हो ॥
दर्शन करने आई,
मां तू, मौज लगा बैठी ॥
ऊँचे, पर्वत, गुफा न्यारी...
मैया, करती शेर सवारी,
हमें, लगती बड़ी प्यारी ॥
ओ मैया... जय हो ॥
दर्शन दे एक बारी,
मुझे क्यों, याद भुला बैठी ॥
ऊँचे, पर्वत, गुफा न्यारी…